तू उसी टैप से निकलती है

तू उसी टैप से निकलती है, मैं अंजुरी भर पी जाता हूँ !

पर तू रत्ती भर न खुलती है,
मैं हर रोज़ टैप को घूमता हूँ !
वो यादें जब कभी मचलती है,
मैं बेचैन-ओ-बेताब हो जाता हूँ !
अब भी आर्ट्स फैकल्टी सपनो में,
अक्सरहां आवारगी कर आता हूँ !
आज की आवारगी मेरी नहीं, एक नायक की, Ninteen साल के, किशोर Teenager की !
बी०एच०यु० के फैकल्टी ऑफ आर्ट्स के अंदर, कला संकाय के मध्य का वृहद् मैदान, मैदान में चौरास्ता सड़क,
दो सड़क फैकल्टी की बिल्डिंग से अंदर बहार आने जाने के लिए,
और दो सड़क उनको क्रॉस करती हुयी बी०एच०यु० के ही अन्य फैकल्टी को जोड़ने वाली...
मेरे इस नायक की एंट्री होती है पूरब दिशा से,
हाथ में एक नोटबुक लिए , नायक नीली जीन्स, ग्रे टी शर्ट और वुडलैंड का जूता पहने,
पैदल आर्ट्स फैकल्टी की पश्चिमी बिडिंग में एंट्री कर रहा है,
जहाँ गणित की वुमन्स कॉलेज की सुन्दर छात्राओं और साइंस व् आर्ट्स दोनों फैकल्टी के, युवा छात्रों की संयुक्त कक्षाओं में, पठन-पाठन कार्यक्रम चला करते थे....
और साथ में चला करते थे...
Teenage युवाओं के Evergreen नवयौवनाओं के साथ,
चोरी चोरी व् चुपके चुपके,
किशोरावस्था के अल्हड़,
आँखों ही आँखों में,
आंखे चार के किस्से !
देखिये इस से पहले कि, मैं भी कहीं उन नव-यौवनाओं के सु-नयनो में, भटक जाऊं, चलिए नायक की कहानी पर स्टिक करते हैं, मतलब टिके रहते हैं !
तो क्यूंकि नायक साइंस फैकल्टी के जे०सी०बोस० हॉस्टल से आर्ट्स फैकल्टी आ रहा है,
लगभग एक किलोमीटर दूर से,
तो प्यासा हो जाता है...
अब क्यूंकि उसको प्यास लग गयी है...
तो वो आर्ट्स फैकल्टी के ग्राउंड फ्लोर पर, बायीं तरफ पानी के लगे नलकों की तरफ बढ़ता है, नोटबुक पीछे जीन्स में अटकाता है, और झुककर, बाएं हाथ से टैप खोलता है,
और दाएं हाथ के अंजुर से पानी को, मुँह से लगाने के लिए झुकता है...
अचानक !
सब कुछ स्लो मोशन, स्लो फ्रेम्स में चलने लगता है...
एक दम धीमी गति से, आहिस्ता आहिस्ता !
तो स्लो मोशन में, स्लो फ्रेम में,
फिर से, शुरू करते हैं...
स्लो मोशन और स्लो फ्रेम्स में नायक पानी का नलका बाएं हाथ से स्लोली खोलता है,
स्लोली झुकता है, और स्लोली स्लोली दाहिना हाथ बढ़ाता है
स्लोली स्लोली टैप से पानी गिर रहा है, नायक के अंजुर पर...
और स्लोली स्लोली , उसी टैप के बगल में एक और टैप के खुलने, और उसमें से पानी गिरने की आवाज़ आती है...
एक खूबसूरत हाथ, टैप से गिरते पानी को, अपने अंजुर से लगाता है,
एकदम सन्नाटा छा जाता है,
सुबह सुबह, खचाखच भरे, आर्ट्स फैकल्टी के ग्राउंड फ्लोर के पास...
पानी पीने वालों की भीड़ के बावजूद...
नायक को कुछ भी सुनायी नहीं दे रहा...
क्यूंकि नायक के स्क्रिप्ट-फ्रेम में नायिका की एंट्री हो गयी है...
अब सिर्फ नायक और नायिका के पानी पीने वाले फ्रेम स्लो मोशन में चल रहे हैं ...
नायक के फ्रेम में, स्लोली स्लोली, बगल वाली टैप में,
नायिका के हाथ आते हैं,
फिर अंजुर आते हैं,
फिर उस अंजुर से सटे,
पानी की स्लो धार,
और उस स्लो धार से लगे,
लाल-गुलाबी मिश्रित छाया लिए,
नायिका के खूबसूरत होठ !
स्लो मोशन में नायिका उन होठों से,
अपने अंजुर को लगाए,
पानी की धार,
पीती जा रही है,
और नायक,
अपनी अंजुर में,
उन लाल-गुलाबी,
मिश्रित छाया लिए
खूबसूरत होठों का प्रतिबिम्ब,
बोले तो परछाई, स्लो मोशन में देख रहा है,,,,,
स्लोली स्लोली नायिका,
जैसे ही उठने को हुयी,
तभी नायक भी
स्लोली स्लोली ,
दोनों हाथ से,
बड़ा अंजुर बना,
उस होठ के प्रतिबिम्ब,
बोले तो परछाई को,
पानी संग पी जाता है
फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है,
स्लो मोशन फ्रेम, नार्मल फ्रेम में बदल जाता है,
आर्ट्स फैकल्टी का शोर फिर से नायक के कान में सुनायी दे रहा है...
नायिका फ्रेम से ओझल हो जाती है
और मेरा शर्मिला नायक, मुस्कुराता हुआ,
एक छोटी सी प्रेम कहानी ,अपने जेहन में लिए,
अपनी Maths क्लास की तरफ बढ़ जाता है...
शायद मज़ाज़ ने ये लाइने मेरे Introvert, बोले तो अंतर्मुखी व शर्मीले नायक के लिए लिखी हैं,
या यूँ कहें कि सिर्फ नायक के लिए ही नहीं, बल्कि उसके जैसी अनगिनत Teenage या किशोरावस्था की छोटी सी प्रेम कहानियों के असंख्य गुमनाम नायक-नायिकाओं के लिए भी लिखी हैं...
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई,
वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए...
इस सई-ए-करम को क्या कहिए,
बहला भी गए तड़पा भी गए...
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके,
कुछ कह न सके, कुछ सुन न सके...
याँ हम ने ज़बाँ ही खोली थी,
वाँ आँख झुकी शरमा भी गए...
अनकही और अधूरी, पानी के नलके वाली टैप के इर्द गिर्द की कई अन्य कहानियां हैं...
एक अपनी भी, के०वी० DLW के दक्षिणी गेट वाले नीम पेड़ के नीचे वाले पानी के नलके और टैप की कहानी भी है,
वो टैप-ए-आवारगी पर फिर कभी, आज नहीं !
क्योंकि आज तो नायक का जन्मदिन है...
एक ऐसा नायक जिसको शायद ईश्वर का वरदान है कि ये आजीवन Teenage में ही रहेगा,
मेरा सौम्य और शर्मिला, Tall, Fair and Handsome ! कॉलेज का अंतर्मुखी दोस्त, Evergreen Teenager Satyakam !
उस Teenage की, टैप-ए-आवारगी को, एक बार फिर से याद करते, मैं और मेरी आवारगी !
तू उसी टैप से निकलती है,
मैं अंजुरी भर पी जाता हूँ,
पर तू रत्ती भर न खुलती है,
मैं हर रोज़ टैप को घूमता हूँ ...

- अभय सुशीला जगन्नाथ

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