MNIT गुंजन

आज पुरानी एक संदूक खुली, 
उसमे "सुलेखा" की स्याही और, 
"गोल्डन निब" की कलम मिली !
पहले तो वो मुस्कुराई, 
फिर कुछ इतराई !
उसके इतराते ही मेरे ज़ेहन में,
कोरे कोरे सुगन्धित कागज़ों पर,
उसके बलखाते और इतराते,
लहराकर चलने की याद आयी !
क्या समन्वय और सामंजस्य था,
जैसे रूहानी इश्क़ की गहराई !

इश्क़ ही तो था !
मेरा पहला इश्क़ !
मन में तो मैं थी सोचती,
पर मेरी कलम करती थी, 
कोरे कागज़ो पर चलकर, 
दूसरों के दिलों में मेरी शनासाई,
पर आज उसके संदूक से निकलते ही,
एक शिकायत की आवाज़ आयी, 
अब तो तुम कंप्यूटर, 
और मोबाइल ले आई, 
भला आज मेरी याद,
तुझे कैसे और क्यों है आयी ?

मैं चुप थी, क्या बोलती ?
परन्तु मैं भी अपने पुराने इश्क़ को,
ऐसे कैसे रूआंसा छोड़ती,
सो मैंने भी मुस्कुरा कर, 
कुछ लाइनें कलम पर ठोक दी ....
 
जानती हो ! अपने पहले प्रेम से,
मैं प्यार क्यों करती हूँ बेहिसाब ?
क्योंकि मुझे पता है, 
जिस दिन होगा मोहब्बत का हिसाब,
मुझे कर्ज़दार बताएगी, 
तेरे इश्क़ की किताब !
कलम भी समझ रही थी,
कि पुराने पन्ने पलटने हैं मुझे,
इसीलिए मैं आज लैपटॉप, 
और मोबाइल को छोड़,
"सुलेखा" और "गोल्डन निब" से,    
इतने दिनों बाद उलझ रही थी !
 
कलम बोली, 
चल चले तेरे सोलहवे सावन, 
और कहेंगे सुनो नवयौवन, 
कह दो किसी को करे सम्बोधन,
क्या होता है, यह भरी भरकम,
इंजीनियरिंग का प्रवेश परीक्षण ?
झट से बोलेगा, कर देसी अलंकरण, 
शारीरिक कम, ज्यादा मानसिक उत्प्रीड़न,
हमने भी झेला था, अपने सोलहवे सावन,
MNIT का उत्प्रीड़न मनभावन !
अभी समझते कि क्या हुआ है, 
राजा जी ले आये मंडल-आरक्षण,
क्लास बंद, कॉलेज बंद, हॉस्टल बंद,
साइन-डाई का माहौल डरवान !

कॉलेज जब पुनः खुला तब,
लड़को के बीच एक बात चली,
मेरी लूना की आवाज़ से,
Classes की घड़ी जा मिली,
और जाने कैसे " शताब्दी एक्सप्रेस " की,
मेरे नाम नाम पर चर्चा चली... 
कुछ खास होने के अहसास में,
मैं भी निखर कर क्या खूब खिली,
और निखरी सरस्वती पूजा में,
मेरी सहेलिया, बन स्वच्छंद तितली,
लाल, चम्पई, और आसमानी नीली
कुछ हॉस्टल के गुलाब सी गुलाबी, 
और मैं डे स्कॉलर बसंती पीली !

आगे सुनो कैसे उन यादों से,
आज भी है ये दिल-ए-बेहाल,
चलो ले चले तुम्हे अपने साथ,
बीते उन दिनों का सुनाने हाल,
कलरव म्यूजिक फेस्टिवल की वो स्टाल,
सिविल लाइन्स में जिसकी कमाई से,
क्या खूब मचाया था हम सब ने बवाल,
और जन्मदिन पर सभी लड़कियों को,
कभी कैंटीन तो कभी अमर स्वीट्, 
और कभी घर बुलाकर मचाना धमाल,
और याद है मुझे आज भी,
शायद आता हो, आपको भी ख़याल,
जन्मदिन का वो अंतिम साथ, 
वो अंतिम पल और वो रंगीनी-ए-जमाल, 
जब सम्पूर्ण ECE बैच के साथ में,
क्या खूब मनाया उस अंतिम साल !

मोती हॉस्टल के लड़को को बुला के,
लेट नाईट शो की टिकट कटवा के,
" थानेदार " का वो गाना बाजवा के,
एक बार फिर, शो बंद कर,
MNIT के लड़को को " तम्मा तम्मा " करने का, 
मन तो ज़रूर करता होगा,
पर क्या करोगे दोस्तों !
जब बीवी की नागिन धुन पर,
किस्मत में " छम्मा छम्मा " लिखा हो,
तो " जुम्मा का चुम्मा " सिर्फ ख्यालों में ही, 
"तम्मा तम्मा " और " हम्मा हम्मा " करता है !

लड़किया भी, 
कुछ कम ख्याली नहीं हैं,
आज भी चोरी चोरी,
तीन से छह शो देख,
दौड़ते भागते हॉस्टल और घर आने का,
जूनियर्स को लाल रिबन की,
दो दो चोटियां करवाने का,
" सूखाग्रस्त " मैकेनिकल के लड़को से,
कुछ फ़्लर्ट कर,
मंद मंद मुस्कुराने का,
और क्लास के लड़को को,
रूठने-रिझाने का, 
लड़किया अपने ख्यालों में, ख़याली पुलाव नहीं,
झमाझम " दम बिरयानी " पकाती रहती हैं ! 

शायर-ए-फितरत कलम,
अक्सर मुझसे कहती हैं,
चल न ECE के फेयरवेल में,
MNIT की सबसे-सुन्दर लड़की पर, 
फिर से कुछ शेर-ओ-शायरी करें,
ताकि अबके इस सावन में, 
इंद्रधुनष के बिबिध-बिरंगे,
बिंदास मनरंगी और सतरंगी,
रंग तेरी सुंदरता पर फिर से चढ़े !

कलम की सावन तो ठीक है,
पर कोई तो किसी दूकान से, 
चार आने की रंग की पुड़िया,
और वो अबीर-गुलाल ले आओ,
फिर से सेमेस्टर एग्जाम देकर,
होली की कोई छुट्टी कराओ,
और घर वापस न जाने के, 
अजीबो गरीब बहाने बनाओ,
मैं भी हॉस्टल में रुक जाऊं,
और मनमौजी अल्लहड़पन के,
खुशनुमा रंग में फिर से रंग जाऊँ !

वो Campus की अजीब सी Tension,
किसी किसी का Interview Excitement,
और किसी का Back वाला Depression, 
आज भी सबने सजा रखा है दिल में,
जैसे किसी Possession का Obsession !
 
मैं लिख तो कंप्यूटर पर रही थी, 
पर यकीन मानिये, इतराते बलखाते,
मेरा पहला इश्क़, मेरी कलम,
हर एक अक्षरशः शब्दों में सज रही थी !
और एक बार फिर मैं 
अपने पहले प्रेम की 
इश्क़-ए-कर्ज़दार बन रही थी !

                          - अभय सुशीला जगन्नाथ 


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