तू नहीं तो मैं भी नहीं
मैं और मेरी आवारगी,
सोचते हैं कभी कभी,
वो भी क्या दिन थे हसीन,
जब दिन रात तू कहती रही,
"तू है तो मैं हूँ,
तू नहीं तो मैं भी नहीं"
और देख तू आज यही,
तन्हाई के आलम में तन्हा,
तू कहीं और मैं भी कहीं !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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नज़र की बात नज़र में रही,
आशिकी भी अपनी गदर में रही,
पर रुसवा हुए वो हमसे इस कदर,
कि जिगर की चोट इसी जिगर में रही !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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उनके नशीले नैनों ने,
इश्क़ का ऐसा नशा गढ़ा,
साकी शराब आजमाते रहे,
फिर भी ना मुझ पर नशा चढ़ा !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
सोचते हैं कभी कभी,
वो भी क्या दिन थे हसीन,
जब दिन रात तू कहती रही,
"तू है तो मैं हूँ,
तू नहीं तो मैं भी नहीं"
और देख तू आज यही,
तन्हाई के आलम में तन्हा,
तू कहीं और मैं भी कहीं !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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नज़र की बात नज़र में रही,
आशिकी भी अपनी गदर में रही,
पर रुसवा हुए वो हमसे इस कदर,
कि जिगर की चोट इसी जिगर में रही !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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उनके नशीले नैनों ने,
इश्क़ का ऐसा नशा गढ़ा,
साकी शराब आजमाते रहे,
फिर भी ना मुझ पर नशा चढ़ा !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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