नब्बे के अल्हड़ अवारे
गंगा किनारे जब कभी बैठे,
वो नब्बे के अल्हड़,
अवारे याद आये,,,
BHU से घाटों की आवारगी में,
पुराने दिलनशींन,
सितारे याद आये,,,
बेशुमार भीड़ में आज फिर,
चैन-ओ-सुकून के,
वो नज़ारे याद आये,,,
- अभय सुशीला जगन्नाथ
गंगा किनारे जब कभी बैठे,
वो नब्बे के अल्हड़,
अवारे याद आये,,,
BHU से घाटों की आवारगी में,
पुराने दिलनशींन,
सितारे याद आये,,,
बेशुमार भीड़ में आज फिर,
चैन-ओ-सुकून के,
वो नज़ारे याद आये,,,
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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