वो ज़माना याद है
दोपहर की धूप में, घाटों पर घुमाने के लिए,
हर शाम लंकेटिंग पर तेरा, रूठ जाना याद है,
हमको अब तक आशिक़ी का, वो ज़माना याद है
- अभय सुशीला जगन्नाथ
तेरे बनारस की हर शाम, हर सुबह,
क्या खूब ! कितना सुहाना लगे,
चंद लम्हात भी जैसे, एक ज़माना लगे
अभय सुशीला जगन्नाथ
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