बचपन, " वायु " बनकर " युवा ", किताबों बीच गुलाबों में.

सवालों के जवाबों में,

जाने कितने ख्वाब बीते,

कलम और किताबों में, 

पर तेरे मेरे दिन-रात बीते,

किताबों बीच गुलाबों में...


                 - अभय सुशीला जगन्नाथ 


वो बचपन के तेरे मेरे,

यादें हैं वैसे के वैसे, 

" वायु " बनकर " युवा " ,

हम साथ उड़े थे जैसे ... 


                      - अभय सुशीला जगन्नाथ 


बचपन से हमारे तुम्हारे,

कुछ याद जुडे हैं ऐसे,

" वायु " बनकर स्वछंद " युवा " ,

खुले आकाश उड़े हो जैसे ...


              - अभय सुशीला जगन्नाथ 







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