कोई देख रहा राहें

 जहां मिली सुनयना ! तुझ संग निगाहें,

और बिछड़ी जहां, तू छोड़ कर ये बाहें !

आज भी उसी गली, उसी मोड़ पे तन्हा,

अधखुली-खिड़की से, कोई देख रहा राहें...


मैं और मेरी आवारगी... और हमारी आहें...


                                      - अभय सुशीला जगन्नाथ 

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क्या खूब बिछड़े थे तुम मुझसे,

छोड़ गए मुझमें अपने आपको,

और जुदा किया खुद को खुदसे ...


                              - अभय सुशीला जगन्नाथ
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दीवानों को कुछ अलग, अंदाज़-ए-बयान है आते,

निःशब्द खामोशियों से हैं करते, एक दूजे से बातें...

                                                  - अभय सुशीला जगन्नाथ
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सिरहाने रख आज भी सोते हैं, वही सूखे गुलाब वाली किताब,

लिखकर छिपाए थे जिसमें, मेरी वो ख्वाहिशें, तुम्हारे वो ख्वाब


भाई,

हर दिलजलों के कुछ-कुछ,

ऐसे ही ख्याल-ओ-जज़्बात

                                      - अभय सुशीला जगन्नाथ
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सिरहाने रख आज भी हैं सोते, वो सूखे गुलाब वाली किताब,

लिख छिपाए थे जिसमें, मेरी सारी ख्वाहिशें, तेरे सब ख़्वाब

                                                                   - अभय सुशीला जगन्नाथ




                


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