पुराने कुछ कोरे कागज़

 उठा कर पुराने कुछ कोरे कागज़,

चल एक रंगीन कहानी लिखते हैं

अल्लहड़ आवारगी से भरी तेरी-मेरी,

आवारा दीवानगी को जवानी लिखते हैं

शाम-ओ-सहर के अपने वो चर्चे, 

शब-ए-महफ़िल के तेरे वो किस्से,

शेर-ओ-शायरी रूमानी-ओ-रूहानी लिखते हैं 


कहते हैं, मैं और मेरी आवारगी, आज भी

लोगों को अक्सरहां, एक दूजे के दिखते हैं

कहते हैं, मैं और मेरी आवारगी, आज भी

लोगों को अश्कों में, एक दूजे के दिखते हैं


- अभय सुशीला जगन्नाथ 

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उठा कर पुराने कुछ कोरे कागज़,

चल एक रंगीन कहानी लिखते हैं

अल्लहड़पन से भरी तेरी और मेरी,

आवारा दीवानी वो जवानी लिखते हैं

शाम-ओ-सहर के अपने वो चर्चे, 

शब-ए-महफ़िल के तेरे वो किस्से,

शेर-ओ-शायरी कुछ रूहानी लिखते हैं .


                                - अभय सुशीला जगन्नाथ 

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उठा कर पुराने कुछ कोरे कागज़,

चल एक रंगीन कहानी लिखते हैं

अल्लहड़पन से भरी तेरी और मेरी,

आवारा दीवानी वो जवानी लिखते हैं

शाम-ए-महफ़िल का हुस्न-ओ-शबाब,

शेर-ओ-शायरी कुछ रूहानी लिखते हैं                                    - अभय सुशीला जगन्नाथ  -----------------------------------------------------------

उठा कर पुराने कुछ कोरे कागज़,

चल एक रंगीन कहानी लिखते हैं

अल्लहड़पन से भरी तेरी और मेरी,

आवारा दीवानी वो जवानी लिखते हैं

शाम-ए-महफ़िल, तेरे हुस्न-ओ-शबाब,

शेर-ओ-शायरी कुछ रूहानी लिखते हैं                                    - अभय सुशीला जगन्नाथ 




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