गुप-चुप फुचके सी नमकीन थी, गोलगप्पा रंगीन थी
DLW के कम्युनिटी हॉल की,
और उस सुंदर दुर्गा-पंडाल की,
दशक नब्बे के दिन-ओ-साल की,
छोटी सी कहानी है ये उस स्टाल की,
मिली थी जहां वो, गोलगप्पा कमाल की...
नाज़ुक बताशा, सूजी सी गोरी-भूरी,
छोले सी मखमली, प्याज़ सी कुरकुरी,
नींबू सी चटक, आमचूर की खटास पूरी,
गुदाज़ आलू सी भरी, टमाटर पूरी रसभरी,
मिर्च सी तीखा-लाल, झन्नाटेदार एकदम खरी,
इमली सी खट्टी-मीठी, चाट मसाला चटक भरी...
गुप-चुप फुचके सी नमकीन थी, गोलगप्पा रंगीन थी !
"शताक्षी" बीच "कामाक्षी" संग,
दुर्गा-पंडाल की यादों में मलंग,
मैं और मेरी आवारगी !
और "सोनाक्षी" के चटखारे रंग...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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और उस सुंदर दुर्गा-पंडाल की,
दशक नब्बे के दिन-ओ-साल की,
छोटी सी कहानी है ये उस स्टाल की,
मिली थी जहां वो, गोलगप्पा कमाल की...
नाज़ुक बताशा, सूजी सी गोरी-भूरी,
छोले सी मखमली, प्याज़ सी कुरकुरी,
नींबू सी चटक, आमचूर की खटास पूरी,
गुदाज़ आलू सी भरी, टमाटर पूरी रसभरी,
मिर्च सी तीखा-लाल, झन्नाटेदार एकदम खरी,
इमली सी खट्टी-मीठी, चाट मसाला चटक भरी...
गुप-चुप फुचके सी नमकीन थी, गोलगप्पा रंगीन थी !
"शताक्षी" बीच "कामाक्षी" संग,
दुर्गा-पंडाल की यादों में मलंग,
मैं और मेरी आवारगी !
और "सोनाक्षी" के चटखारे रंग...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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DLW है आशना, मुझे ये बता गयी
वो भूली दास्तान जब याद आ गयी
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शीतल हवाओं में,
खुशबुओं के झोंके
कौन सी बंदिश है,
जो कभी इन्हें रोके...
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अब तलक सब याद रहा
मुझ में तू, तेरे बाद रहा...
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हरे पत्ते के अंजुर में बैठी,
गोरी सी वो कुरकुरी,
पुदिने के पानी मे सरोबार,
खट्टी-मीठी चटनी में लिपटी,
इस जीवन्त बताशा को
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