कहाँ से शुरू करूं, और मैं क्या लिखूँ...
जिससे मैं शुरू हुआ, शब्द वो "माँ" लिखूँ !
आँचल में बांध कर मेरे लिए,
आसमान के चाँद और सितारे,
हर रात जो तूने मेरे गोद में उतारे,
उन्ही ऊंचाइयों पे जहां तू आज है,
वहां तक मेरी ये आवाज़ पुकारे...
कि माँ ! सब कुछ है लेकिन,
कुछ भी नही है, आज मेरे द्वारे...
ऐ ईश्वर ! मैं आज से, अभी से,
माँ की यादों और ममता सहारे...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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