माई तू एक, तोर रूप अनेक !

सून कइके अंगना-आ-दुआर,
अन्हरिया गइलीं दुरगा माई,

चकमक-जगमग अंजोर लिहले,
चमकत अइली लक्ष्मी माई,

उनका से पूछले सूरज भाई,
अकेले हम का करब ए माई,

मुसका के कहली छठी माई,
अरघ प रउवा, भोरे-भोरे आयीं !

माई तू एक, तोर रूप अनेक !
का अब लिखीं, कइसे बतायीं...

                    - अभय सुशीला जगन्नाथ 




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