बाग़ों के गुलाब थे खिले, रुख़सार-ए-तबस्सुम

सुबह-ए-बनारस तारीफ में, देख एक गुलाब को,

यूँ ही कुछ शब्द थे लिखे, मैंने दिल-ए-बेताब को,

शेर-ओ-शायरी बना गयी, वो हटाकर नक़ाब को

 

कि बाग़ों के गुलाब थे खिले, रुख़सार-ए-तबस्सुम

बा-मुश्किल था सम्भाला मैंने, अहद-ए-शबाब को

 

                           - अभय सुशीला जगन्नाथ


Dimple Diva, Ravishing Rose
with Stunning Smile & Twinkle Eyes
A Gorgeous Girl, A Lovely Lady,
A Wonder Woman... Beauty in Disguise

 

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