माँ कहाँ किस मोड़ गयी !
चप्पल पहनने को बोल वो, अक्सर अकेला छोड़ गयी,
बचपन की यही बात मुझको, अब भी रोज़ाना तोड़ गयी...
देखूंगा अबकी नंगे पांव जाके, माँ कहाँ किस मोड़ गयी !
टाइप 3 डी०एल०डब्ल्यू० के तालाब वाली लाइन का एक बंगला, और माता जी की अमिट छवि, मोटा चश्मा, दूधिया-गोरा सुंदर मुखड़ा, हल्के धीमे कदमों से एकदम पास आकर पूछना कौन ?
अभय !
आ जाओ, और फिर वो आवाज़
गोलू !
अभय और गौतम आएं है !
दसवीं के बाद अश्विनी भी अक्सर साथ होता था,
परंतु तब भी माता जी मेरे नाम से ही ग्रुप को संबोधित करती थीं
क्योंकि, माता जी मुझे बाल निकेतन से जानती थी और जब ज्ञानेंद्र के साथ हमारा एडमिशन बी०एच०यू० वाले केंद्रीय विद्यालय में हुआ तब रिक्शे से ज्ञानेंद्र के साथ आने जाने के कारण वो मुझे ज्यादा मानने लगीं
हम दोस्तों को कभी भी नही लगता था कि वह सिर्फ ज्ञानेंद्र और वंदना दीदी की मम्मी हैं
हमारे ग्रुप स्टडी के बीच बीच मे आकर,
" चाय बना दू या फिर कुछ खाने के लिए बना दू "
ये सब आवाज़ मेरे कानों में तब से गूंज रहा है, जब से गोलू ने यह दुखद खबर सुनाई
बचपन से, गोलू बहुत करीबी दोस्त है, और माता जी के हाथ का आलू की सब्ज़ी और पराठा लेकर आता, तो एक एक्स्ट्रा मेरे लिए माता जी डाल देती थीं
लिखते लिखते हाथ कांप रहेहैं, और आंखें डबडबायी हुई हैं
अभी तक गोलू से बात भी करने की हिम्मत नही कर पा रहा हूँ
दीदी , गोलू और माता जी की बहुत सी यादें है, पर लिख नही पाऊंगा
माँ जी !
आपकी कमी हम बच्चों के बीच कभी भी पूरी नही हो पाएगी
पूरा बचपन आपके साथ साथ आज आंसूओं से नम है
बस 😓😥😪 नमन
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