शक्ति ! तू फिर वसलत रंग, नहीं तो शिवाय फुरकत रंग...

तू होली जैसी आती है,
चेहरों के रंग बदल जाते हैं,

जब होलिका सी दहकती है,
जाने कितनों के दिल जल जाते हैं,

तू जब पलाश सी महकती है,
खिल फागुन, चइत में ढल जाते हैं,  

तू ही है होली सतरंगी,
फगुआ की फ़ाग मनरंगी,
मस्त झूमती नवयौवन संगी,
पूरवा बसंती बयार बे-ढंगी !

कातिक रंग, तू अगहन रंग
भादो रंग,  तू सावन रंग,
बारहो मास का मन भावन रंग,
शाम-ओ-सहर का पिन्हा रंग,
पल पल आठों पहर तू है नौरंग !

तू माँ का रंग, है तू बेटी रंग,
नैहर-पीहर का तू आँगन रंग,
नींदों का रंग, तू करवट रंग,
ख़्वाबों पे पड़े सलवट का रंग,
तू ही है हर हसरत का रंग !

ऐ विसाल रंग ! ऐ फ़िराक रंग !
मस्त झूमती तू नवयौवन संग,
बयार बे-ढंग बन पूरवा बसंत...
शक्ति ! तू फिर वसलत रंग,
नहीं तो शिवाय फुरकत रंग...

                       - अभय सुशीला जगन्नाथ  


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