स्वेटर की गिरह

 जीवन की उलझी-उधड़ी, स्वेटर की गिरह खोल जाओ ना,

नए ऊन का गोला लिए, माँ आँखों पे वो चश्मा चढ़ाओ ना,

फिर से मेरे उन ख़्वाबों की, बुनाई-सिलाई करने आओ ना...


                                                            - अभय सुशीला जगन्नाथ 



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