एक आवारा रात का समाँ
मशरूफियत में मशगूल थे, फुर्सत थी न जाने कहाँ,
आज यारों ने महफ़िल सजा, जगाई ज़िन्दगानी वहां,
वो अल्हड़ रवानी जहाँ, हुई फिर वहीं जवानी जवां...
कल तक जो दिल-ओ-जान थे, हुए न जाने गुम कहाँ,
हुस्न-ए-जाना के जिक्र से, हुई वो पुरानी कहानी रवां...
अन्ना डॉन के सरदार, और एक आवारा रात का समाँ !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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मशरूफियत में मशगूल थे, फुर्सत थी न जाने कहाँ,
आज यारों ने महफ़िल सजा, जगाई ज़िन्दगानी वहां,
हुई फिर वहीं जवानी जवां, और अल्हड़ रवानी रवां...
हुस्न-ए-जाना के जिक्र से, हुई वो पुरानी कहानी जवां,
कल तक जो दिल-ओ-जान थे, हुए न जाने गुम कहाँ...
मैं और मेरी आवारगी, और एक आवारा रात का समाँ !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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