एक आवारा रात का समाँ

मशरूफियत में मशगूल थे, फुर्सत थी न जाने कहाँ,
आज यारों ने महफ़िल सजा, जगाई ज़िन्दगानी वहां,

वो अल्हड़ रवानी जहाँ, हुई फिर वहीं जवानी जवां...

कल तक जो दिल-ओ-जान थे, हुए न जाने गुम कहाँ,
हुस्न-ए-जाना के जिक्र से, हुई वो पुरानी कहानी रवां...

अन्ना डॉन के सरदार, और एक आवारा रात का समाँ !

                                                                   - अभय सुशीला जगन्नाथ 

--------------------------------------------------------------------------------

मशरूफियत में मशगूल थे, फुर्सत थी न जाने कहाँ,
आज यारों ने महफ़िल सजा, जगाई ज़िन्दगानी वहां,

हुई फिर वहीं जवानी जवां, और अल्हड़ रवानी रवां...

हुस्न-ए-जाना के जिक्र से, हुई वो पुरानी कहानी जवां,
कल तक जो दिल-ओ-जान थे, हुए न जाने गुम कहाँ...

मैं और मेरी आवारगी, और एक आवारा रात का समाँ !

                                                         - अभय सुशीला जगन्नाथ 


बरसात का कुछ पता नही,
तेरी यादों में मौसम ऐसा है,
दिन रात भीगती पलकों का,
माहौल सावन-भादो जैसा है
    
                        - अभय सुशीला जगन्नाथ 
.....................................................................

तो क्या हुआ मिलने के बाद, रुख़सत है, फिर दूरी है
मशरूफियत में पर दोस्त कुछ, लम्हे फुर्सत ज़रूरी है 

                                                  
- अभय सुशीला जगन्नाथ 




Comments

Popular posts from this blog

राधा-कृष्ण ! प्रेम के सात वचन !

परी-सुरसुन्दरी, अप्सरा-देवांगना

बिन फेरे हम तेरे