प्लेटफार्म संख्या पांच

धीरे धीरे दिल की धड़कन,
रुकती जा रही है
वाराणसी से चलकर,
नई दिल्ली को आने वाली,
काशी विश्व्नाथ एक्सप्रेस, KV,
प्लेटफॉर्म संख्या पांच पर आ रही है !

दिल-ए-स्पंदन से सांसे,
लय मिला रही है,
ट्रेन की धमक से धक-धक,
बढ़ती जा रही है !
यादों की दस्तक ज़ेहन को,
कदम-ताल करा रही है !

बरसों पहले छोड़ आये,
जो इक अधूरी कहानी,
बनारस के प्लेटफॉर्म पे,
वो इश्क़ रूमानी,
दिल्ली के प्लेटफॉर्म पर,
वही मौज-ए-रवानी...
इक तूफां उठा रही है,
रूमानी इश्क़ आज वही,
बन रूहानी आ रही है,
इंजन अपने डब्बे को,
प्लेटफार्म संख्या पांच पर,
खिंचे जा रही है...

उस रोज़,
ट्रेन की खिड़की से,
एक बड़ा सा,
टिफिन था मिला,
सजाया था जिसमे तुमने,
कुछ-शिकवा, कुछ-गिला,
सत्तू की पूड़ियों संग खट्टा-तीखा,
यादों का लंबा सिलसिला !
आज तहरीर-ए-जज़्बात आंखों से,
बहती जा रही है,
फिर कुल्हड़ की चाय तू,
ठंडी पिला रही है !

वाराणसी से चलकर,
नई दिल्ली को आने वाली,
काशी विश्व्नाथ एक्सप्रेस, KV,
प्लेटफॉर्म संख्या पांच पर आ रही है !

                                     - अभय सुशीला जगन्नाथ 

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यादों में ख़यालात,

कागज़ पर जज़्बात

मैं और मेरी आवारगी

आज भी तेरे साथ

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दक्षिण की इक लंबी दूरी, तय किया जब ट्रेन-ओ-सफर,

इश्क-ए-सिफ़र को तब मिली, हसीं इक सुब्ह-ओ-सहर




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