पैरों के निशाँ
मुद्दत हो चली हाथों की रेखाओं को देखते देखते,
जाने क्यों टूटता नहीं ख़ुदाया इन लकीरों का गुमाँ,
दहलीज़ पर इस बार तू मेरी रख जा पैरों के निशाँ..
मैं और मेरी आवारगी... और राधे मुकद्दस हमनवाँ
- अभय सुशीला जगन्नाथ
मुद्दत हो चली हाथों की रेखाओं को देखते देखते,
जाने क्यों टूटता ही नहीं ख़ुदा की लकीरों का गुमाँ,
दहलीज़ पे आकर मेरी, रख जा अपने पैरों के निशाँ..
मैं और मेरी आवारगी... और राधे मुकद्दस हमनवाँ
- अभय सुशीला जगन्नाथ
मुद्दत = लम्बा समय
Period
गुमाँ = अभिमान, अहंकार
Ego or Arrogance
दहलीज़ = दरवाज़े की देहरी या डेहरी या ड्योढ़ी
Floor in the Doorway, or the Doorway इटसेल्फ
मुक़द्दस = परम पवित्र, दैदिव्य
Holy, Divine
मुद्दत हो चली हाथों की रेखाओं को देखते देखते,
जाने क्यों टूटता ही नहीं ख़ुदा की लकीरों का गुमां,
बस एक बार दहलीज़ पर तु रख जा पैरों के निशां...
हाथों की लकीरें लिए बहुत हुआ इंतज़ार,
दहलीज़ पे डाल तू अपने पैरों के निशान,
तोड़ जा ख़ुदा के दिये लकीरों का गुमान,
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