भाई-जान से वो रश्क-ए-गुनाह
माना जायज़ नहीं था तेरे भाई-जान से वो रश्क-ए-गुनाह
मजबूर था पर दिल-ए-नादां करके तुम्ही से इश्क़ बेपनाह
RakshaBandhan रक्षाबंधन
- अभय सुशीला जगन्नाथ
आज मैं और मेरी आवारगी, गुज़रे जब तेरी गलियों की राह,
बेचैन कर गया दिल-ए-नादां, करने को फिर वो हसींन गुनाह,
कि रश्क निभाते तेरे भाई-जान से, पर तुझसे इश्क़ वो बेपनाह
RakshaBandhan रक्षाबंधन
- अभय सुशीला जगन्नाथ
माना जायज़ नहीं था भाई-जान से मेरा वो रश्क-ए-गुनाह
मजबूर था पर दिल-ए-नादां करके तुम्ही से इश्क़ बेपनाह
RakshaBandhan रक्षाबंधन
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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