इश्क़ के "असफ़"

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे

98 की सर्दियों का मौसम, और नए नए फ्लैट B-224, सेक्टर-20 फ्लैट में, सुबह 4 बजे वॉकमेन से होता छोटे कंप्यूटर स्पीकर में बजता, जगजीत सिंह की आवाज़ में मिर्ज़ा ग़ालिब का कैसेट !
हम लोगों को इस नए फ्लैट में शिफ्ट हुए बस एक दो दिन ही हुए थे और हम लोग का मतलब मैं और हमारे दो अज़ीज़ मित्र संग एक बड़े भाई तुल्य सत्य प्रकाश " सत्या गुरु " !
वो बाकी दो महान विभूतियाँ थी रजत सहगल और आसिफ अहमद ( Asif Ahmad )!
एक बड़े सवादी, इलाहाबादी...दूसरे लखनऊ नवाबी !
और हम दो बनारसी !
बहुत कम लोग जानते हैं की सत्य प्रकाश श्रीवास्तव ( Satya Srivastava ) यानी सत्या गुरु को "गुरु" की पदवी और नाम आसिफ ने ही दिया था !
तो हम और आसिफ आगे वाले रूम पार्टनर, और पीछे वाले में रजत सहगल और सत्या गुरु !
आसिफ ने मुझसे जान रखा था कि मैं 3-4 बजे उठकर गाना सुनते हुए पढ़ने बैठ जाता हूँ, और उसने भी बता रखा था कि वो रात में 3-4 बजे तक पढता है , मतलब जब वो सोने जाता तब मैं उठता !
लेकिन उसको ये नहीं पता था , कि गाना मैं कौन सा बजाऊंगा ! और उससे भी बड़ी बात उस संगीत का वॉल्यूम कितना होगा !
तो सुबह सुबह साढ़े तीन बजे ! वॉकमेन से होते स्पीकर की फुल वॉल्यूम आवाज़ ! गुलज़ार की आवाज़ से हमारा रूम महक उठा !
बल्ली-मारां के मोहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियाँ
सामने टाल की नुक्कड़ पे बटेरों के क़सीदे
गुड़गुड़ाती हुई पान की पीकों में वो दाद वो वाह वाह
चंद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा से कुछ टाट के पर्दे
एक बकरी के मिमियाने की आवाज़
और धुँदलाई हुई शाम के बे-नूर अँधेरे साए
ऐसे दीवारों से मुँह जोड़ के चलते हैं यहाँ
चूड़ी-वालान कै कटरे की बड़ी-बी जैसे
अपनी बुझती हुई आँखों से दरवाज़े टटोले
इसी बे-नूर अँधेरी सी गली-क़ासिम से
एक तरतीब चराग़ों की शुरूअ' होती है
एक क़ुरआन-ए-सुख़न का सफ़हा खुलता है
" असदुल्लाह-ख़ाँ-'ग़ालिब' का पता मिलता है ! "
आसिफ उठ कर बैठ गया ! शायद उसकी नींद आवाज़ ने तोड़ दी थी !
और उठे भी क्यों ना ! मिर्ज़ाग़ालिब का ऐसा इंट्रोडक्शन सिर्फ गुलज़ार ही लिख और बोल सकते हैं ! कालजयी और अविस्मरणीय !
आप भी कभी मिर्ज़ा ग़ालिब सीरियल का ऑडियो ग़ज़ल जगजीत सिंह और अन्य कलाकार का मौका मिलने पर ज़रूर सुनियेगा... आप की भी नींद उड़ जाएगी !
मैंने पुछा क्या हुआ ! आसिफ बोला कुछ नहीं भाई ! संगीत ने नींद तोड़ दी !
फिर कुछ बात चीत भी होने लगी तभी वॉकमेन से ऊपर वाला ग़ज़ल शुरू हुआ !
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
आसिफ ने पूछ लिया ? अभय भाई ! बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल का मतलब जानते हो ?
मैंने कहा नहीं ! तो उसने कहा तब इतने उर्दू के ग़ज़ल को समझते कैसे हो, वह भी मिर्ज़ा ग़ालिब !
मैंने कहा कि कुछ कुछ का अर्थ समझ आता है , कुछ का बिलकुल नहीं , परन्तु मिला जुला कर समझ आ जाता है ! मैंने बनारस में बहुत खोजा था उर्दू से हिंदी में ट्रांसलेशन वाली डिक्शनरी, मिली ही नहीं , तुम लखनऊ से मेरे लिए लेते आना !
तब आसिफ बोला, अरे पुरानी दिल्ली में ढूंढा जायेगा ! वहां शायद मिल जाये और तभी परफेक्ट टाइमिंग कि तरह ग़ज़ल कि ये लाइन भी तभी आयी !
मत पूछ के क्या हाल है मिरा तेरे पीछे ?
तू देख कि क्या रंग है तेरा मिरे आगे !
मतलब उर्दू में दोनों का हाल एक जैसा था, मगर आसिफ भाई हमसे ज्यादा जानते थे, मगर वो भी फ़ारसी वाली उर्दू से नावाकिफ थे !
हम दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे, परन्तु आसिफ ने वादा किया और बोला किसी रोज़ चला जायेगा पुरानी दिल्ली डिक्शनरी खोजने !
और हम गए भी पुरानी दिल्ली ! डिक्शनरी तो नहीं मिली , परन्तु वहां से हम दोनों, गुलज़ार की लिखी लाइन को जी कर आये, एक एक लाइन को एहसास कर के आये, ग़ालिब को बल्लीमारान में महसूस कर के आये !
आज भी आसिफ भाई कि बल्लीमारान की पिलाई चाय का कायल हूँ और जब कभी पुरानी दिल्ली अकेले या किसी मिज़ाज़ी दोस्त के साथ जाता हूँ तो वो चाय ज़रूर पीता हूँ और पिलाता हूँ !
उर्दू से नज़दीकी तार्रुफ़ कराने के लिए आसिफ भाई मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार रहूँगा और अल्लाह का भी शुक्रगुज़ार रहूँगा जिसने मुझे तुमसे मिलवाया ! बेमिसाल हो तुम दोस्त और तुम्हारे संग के गुज़ारे लम्हे भी यादगार और अनगिनत हैं, आज बस इतना ही ...
और बाकी बातें फिर कभी क्योंकि तुम्हारा ज़िक्र हो तो बंटू सिंह ( Vijay Singh ) रोहित मिश्रा ( Rohit Mishra ) संग अतुल पांडेय ( DrAtul Pandey ) दिल-ए-अज़ीज़ ;मनीष मिश्रा को कैसे छोड़ दिया जाये , तो बंटू और तुम्हारी दोस्ती की लखनऊ और नॉएडा की कहानिया फिर कभी ! चलते चलते... कुछ और स्पेशल तुम्हारे लिए...
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के
चलते चलते, इस लाइन से जुडी बात आपको बताता चलूँ कि ये ग़ालिब भी न बहुत गज़ब के थे, बिलकुल आसिफ भाई की तरह !
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ , क्योंकि ग़ालिब लिखते ऐसा थे जैसे एकदम निगेटिव बोले तो नकारात्मक या नकारा, परन्तु जब आप गहराई से अर्थ समझेंगे तो तो एक प्रेरणा मिलेगी ठीक अपने आसिफ भाई की तरह, जो ऊपरी बातचीत से जितने लापरवाह दिखते, अंदर से वो उतने ही ज़िम्मेदार और सकारत्मक सोच से क्रियाकलाप करने वाली शख्सियत हैं !
बोले तो शानदार , जानदार ... असरदार !
बिलकुल "ऊपर" वाले ग़ालिब और शेर की तरह, परन्तु सच्चाई में नीचे वाले मेरी लाइन की तरह
इश्क़ के "असफ़" ने आदमी काम का बना दिया
वरना इस जहान में हमसा कोई बदनाम ना होता
Best Wishes & Happy Birthday Asif Bhai !
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बाज़ीचा = Play, Fun, Frolic
खेल, तमाशा, क्रीडा, कौतुक
अतफ़ाल = Children, Offspring, Kids
बच्चे, बालकगण, लड़के, छोटे बच्चे, शिशु
असफ़ = Regret, Remorse, Sorrow
बहुत अधिक खेद, सख्त रंज, गम

- - अभय सुशीला जगन्नाथ


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