श्यामल अर्घ के गोधूलि पहर, पाक़ सुब्ह-ओ-अर्घ मुन्तज़र = छठ , छठी मइया

आज फिर ख्यालों के रहगुज़र

खुल रही वो अधखुली खड़की,

जिनसे हटता था परदा दोपहर...


श्यामल अर्घ के गोधूलि पहर

फिर निकल रहा है माहताब,

कभी चाँदनी सा चौथे पहर...

और कभी बनकर आफताब,

एक नूर-ए-सहर, मेरी नज़र...

पाक़ सुब्ह-ओ-अर्घ मुन्तज़र


                                   - अभय सुशीला जगन्नाथ



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