बिहार कोकिला इक नज़र - पद्मश्री शारदा सिन्हा जी
उजर बगुला बिना पिपरा ना सोहे
कोयल बिना बगिया ना सोहे राजा
पनिया के जहाज से पलटनिया बनके जइहऽ
ले ले अइहऽ होऽ पिया सेनूरा बंगाल के।
बाबा दिहले टिकवा सेहुर हम तेजब
बलमुआ कैसे तेजब ए छोटी ननदी
हमार जिया डोले रे छोटी ननदी
और इस कैसेट / एल्बम का टाइटल ट्रैक
बताव चाँद केकरा से कहाँ मिले जालऽ
और मेरा सदाबहार...
हमनी के रहब जानी दूनू परानी
अंगना में कींच-काँच दुअरा पर पानी
खाल ऊँच गोर जाला चढ़ल बा जवानी
90 के दशक में महेन्दर मिसिर को पूर्व-भारत और पुरबिया लोगो के घर घर सुना जा रहा था, परन्तु किसी को पाता नहीं था की ये गीत किसने लिखे और साथ ही इन्ही काव्यों के स्वर मॉरीशस तक गूँज रहे थे, मतलब अपने पहले एल्बम से ही अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करता संगीत और काव्य कितना शानदार होगा यह बिना उस संगीत को सुने आप नहीं समझ सकते !
गानों के रचयिता थे महेन्दर मिसिर , जिनसे मेरा परिचय तो विस्तार से मेरे पत्रकार भाई स्वर्गीय गुड्डू राय ने कराया, क्योंकि वह भी हम दोनों भाइयों की तरह छपरा के ही थे ,
महेन्दर मिसिर का जन्म 16 मार्च 1886, मिसिरवलिया गांव , प्रखंड जलालपुर, छपरा (सारण) में हुआ था !
परन्तु जो स्वर अंतराष्ट्रीय स्तर पर गूँज रहा था, उससे परिचय मेरे पिताजी स्वर्गीय जगन्नाथ प्रसाद यादव जी ने करवाया, क्यूंकि इस बिहार कोकिला के कैसेट '' केकरा से कहाँ मिले जाल '', पापा जी ही खरीद कर लाये , और तब से लेकर आज तक, इस स्वर कोकिला के अनेको भोजपुरी गीत मेरे प्रिय हैं
ये स्वर किसी और का नहीं और वो अंतराष्ट्रीय बिहार कोकिला, कोई और नहीं बल्कि पदमश्री शारदा सिन्हा जी की है, जिनका आज दिल्ली के एम्स में कैंसर से लड़ते हुए निधन हो गया ! परन्तु यह शारीरिक निधन है , क्यूंकि बिहार कोकिला तो अजर अमर हैं !
और अजर-अमर है शारदा सिन्हा जी द्वारा गाये गए छठ के लोकप्रिय गीत ! कालजयी और अविस्मरणीय !
उन सबसे भी कई यादें जुडी हैं क्योंकि स्कूल में पढ़ते समय 80 के अंत आते-आते और 90 के शुरुआती दौर में DLW / BLW में भी छठ पूजन धीरे धीरे जोर पकड़ने लगा था, और डीरेका परिवार के पूरबिये लोग मेरे केंद्रीय विद्यालय के ठीक बगल स्थित तालाब के साज-सज्जा और साफ़ सफाई की शुरुआत कर आज के सूर्य सरोवर की नीव उन्ही दिनों रख रहे थे, जो आज पूरे बनारस में विख्यात सूर्य सरोवर है !
परन्तु छठ के इस महापर्व के समय छठी मैया के गीतों को हमारे-दिलो जेहन में सदा के लिए बसाने वाली शारदा सिन्हा जी जो अपने नाम को चरितार्थ करने वाली साक्षात् सरस्वती थी, आज उन पुराने दिनों को फ़िर से ताजा कर गयीं...
उन पुरानी यादों , जिनमे वो स्कूल के दिन, वो तालाब, वो छठ और डीरेका परिवार के सभी पुराने सदस्यों साथ पुराने दोस्त और माता पिता सब बहुत याद आ रहे हैं !
और याद आ रहे हैं , शारदा जी द्वारा गए हुए मेरे दो छठ के सबसे पसंदीदा गीत, जिनमे पहला तो नीचे है, और दूसरा वीडियो में ...
सोना सट कुनिया, हो दीनानाथ
हे घूमइछा संसार, हे घूमइछा संसार
आन दिन उगइ छा हो दीनानाथ
आहे भोर भिनसार, आहे भोर भिनसार
आजू के दिनवा हो दीनानाथ
हे लागल एती बेर, हे लागल एती बेर
भोजपुरी की कर्णप्रिय गायिका, जिन्होंने भोजपुरी संगीत को जो आयाम दिया उसके लिए भोजपुरी समाज उनका सदा आभारी रहेगा, वरना पूरबिया के जनक गायको में से एक महेन्दर मिसिर से जन जन कभी इस रूप में रूबरू ही नहीं हो पाता !
और ना ही भोजपुरी संग छठ विश्व स्तर पर पहुँच पाता , जिस स्तर पर शारदा जी ने अपने गीतों के माध्यम से इसको अंतराष्ट्रीय ख्याति दी !
पीपल तले वो पुराना मंदिर,
और तालाब किनारे वो स्कूल,
यूँ ही पड़ जाते हैं, अब भी मेरे डगर...
मैं और मेरी आवारगी !
जब भी कभी चले जाते हैं,
नादान-अन्जान फिर तेरे शहर...
दिखता है वो बचपन, वो जवानी,
वो अल्हड़ता भरी बेतुकी सी कारस्तानी,
और नरगिस-ए-नाज़ के, वो दिलकश भंवर...
सर्द कतिकी बयार लिए,
स्कूली रास्तों के रहगुज़र,
तलाब किनारे हैं बैठे मुन्तज़र,
पाक़ अर्घ के उस शाम-ओ-सहर,
देखने को उस आफ़ताब का असर,
आज फिर इक नज़र, छठ के पुराने हमसफ़र,...
उसी सफर में शारदा आज,
खो गयी नजाने किस डगर, किस नगर...
मैं और मेरी आवारगी, और बिहार कोकिला इक नज़र !
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि पद्मश्री शारदा सिन्हा जी !
Tearful tribute to Padmashree Sharda Sinha Ji !
नरगिस-ए-नाज़ = The eye of beloved
प्रिय की आंखें
रहगुज़र = Traveler
मुसाफिर, यात्री
मुन्तज़र = Awaited, Expected
वो जिसका इंतज़ार हो, वो जिसकी आशा हो
पाक़ = Holy
पवित्र
सहर = Day-break, Sun Dawn of day
प्रातःकाल, भोर, सवेरा, सुबह
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