सोचते रहते है तुमको जब हम सोचते हैं
तुझमे अपने आप को कुछ यूं खोजते हैं
सोचते रहते है तुमको जब हम सोचते हैं
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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तुझे सोचते रहने की, बला ये आदत क्या है,
मेज़ पे पड़ी तन्हा कलम का कागज़ पे बयां है,
शायर-ए-फ़ितरत है और ज़ेरओ-ज़बर दरम्यां है
- अभय सुशीला जगन्नाथ
शायर-ए-फ़ितरत =
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