अपनी सिधिया मौसी का, मां की तीन बहनों में मझली बहन !
का बबुआ कब अइलS हS ! अकेले आइल बाड़S, कि दीदियो आइल बियाS ! कब ले रहे के बाS !
जब तक वो एक खिली मुस्कान लिए इतने प्रश्न पूछती, उतनी देर में मैं उनके पैर तक झुक जाता और एक एक कर जवाब देता !
= अम्मा अउर बबियो आइल बिया, गरमिया के छुट्टिया भईल बा, त रहेम सन अबहिं महीना भर !
तो पीछे से गुड्डू की आवाज आती, खड़हीं - खड़हीं सब पूछ लेबे का ए माई, बईठे के ना कहबे भइया के, जो पानी-उनी ले आव, चाय बनवाव, बबी से कह दे !
मुझे अपने घर के दुआर पर देखते ही, दिवंगत गुड्डू भाई (पत्रकार) की मां और मेरी मौसी जी के एक सांस में सारे प्रश्न पूछने का सिलसिला, आज से बस यादों और खयालों में शामिल हो गया, पर उसकी और गुड्डू की आवाज मेरी अंतिम सांस तक गूंजेगी !
ल भइया चाय , पिय !
और मौसी का पीछे से बोलना, मिठइया आ नमकीनवा त खा लेवे दे हमरा बबुआ के...
ल ना बबुआ, खा लS !
दीदिया से आएम मिले खातिर सांझ के, जयिह त बता दिह !
= अब मौसी हम, का बोलीं अउर का लिखीं , समझ में नायिखे आवत
तू ही अम्मा आ गुड्डू से बोल दिह, हम जहवां भी बानी, उन्कारा लोग के याद करत रहिला, भले आंख डबडबा जा ला, आ चाहे रो दिहिला !
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