मंजिल की तलाश, रहनुमा की मिसाल

होंगे कोई जिनकी है डगर, किसी मंजिल की तलाश में आवारगी मेरी उस रहगुज़र, रहनुमा जिसकी मिसाल दें

क्लास 3 केंद्रीय विद्यालय BHU, जुलाई-अगस्त का नया सेशन, सन 1984
टी सी लेकर पापा जी ने बोला " घर चलें !"
और मेरा रोना शुरू, आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे, क्योंकि 2 साल तक BHU के मित्रों का साथ ऐसा था, जो आज भी यादगार हैं, वह सब अब छूट रहा था, हमेशा के लिए !
मैं घर पर तो तब से ही रो रहा था, जब से यह बताया गया, कि हमारा ट्रांसफर सीट DLW वाले केंद्रीय विद्यालय में पक्का हो गया है,
परंतु अंतिम दिन पहाड़ था, जो आज भी जब कभी याद आता है, तो एक नन्हे बच्चे का अपने दोस्तों से बिछड़ने का ग़म ताजा हो जाता है जिसमें Ratndeep Singh , Anuroop Kabthiyal और Ashutosh Mishra प्रमुख हैं परन्तु सबसे ज्यादा गमगीन मैं अपने जिगरी दोस्त से बिछड़ने के कारण था, Gyanendra Johri , जो बाल निकेतन के नर्सरी से मेरे साथ था, फिर KV BHU भी साथ में ही नहीं बगल वाली सीट पर ही रहा
खूब रोया, 3 - 4 दिन तक रोया, परन्तु सब बेकार, ट्रांसफर का दर्द सिर्फ उन्हें ही पता होगा, जिन बच्चों के स्कूल बदले जाते हैं, ख़ासकर छोटी उम्र में, जब हम अबोध बालक और बालिका होते हैं !
भुला बिसरा आज फिर नन्हा वो फरिश्ता याद आया
BHU में छूटा बचपन का तन्हा वो रिश्ता याद आया
ज्ञानेंद्र फिर मिला, क्लास 5th में आया, DLW ट्रांसफर होकर, और उसकी सीट पक्की, मेरे बगल वाली, दो बिछड़े दिल फिर मिल गए !
क्लास 7th की बात है, एक दिन ज्ञानेंद्र, आया और बोला, अभय, अब मैं तुम्हारी बगल वाली सीट पर नहीं बैठूंगा, क्योंकि मुझे टेस्ट की तैयारी करते समय यह लगता है, कि अगर किसी प्रश्न का उत्तर नहीं आया तो अभय से नकल कर लेंगे, पर तुम जानते हो यह गलत है, और मुझे इस आदत से निजात पाना है...
मैं जनता था, इमोशनल , हम दोनों दोस्तों के लिए ये बहुत कठिन था, परन्तु हम तैयार हुए, एक दूजे के उज्ज्वल भविष्य के लिए
साल 1992, दसवीं पास करके हम लोग इंजीनियरिंग और मेडिकल के सपने लिए ग्यारहवीं के विद्यार्थी हो गए थे
कॉमर्स और साइंस का बंटवारा हो चुका था, कुछ दोस्त डी रे का इंटर कॉलेज चले गए और कुछ अज़ीज़ लोग आर्ट्स पढ़ने BHU चले गए...
अनजान शहर अजनबी रास्ते तन्हाई हर सु
हर वक्त हर लम्हात यादों में तू ख्वाबों में तू
मैं और मेरी आवारगी बस नवाफ़िक इक तू
जुदा हुए दोस्तों का ग़म लिए, और नए बेरंग से चेहरों के बीच, क्योंकि वह भी बिछड़ कर आए थे, हम चार दोस्त इंजीनियरिंग की तैयारी के ग्रुप स्टडी पार्टनर हो गए, पहला चॉइस तो ज्ञानेंद्र ही था फिर Goutam Mandal और अंत में Ashwini Singh, क्योंकि बुड्ढा भी सेम टेंपरामेंट वाला था
उन तैयारियों की भी अनगिनत कहानियां है, लेकिन आज सपनों की बातें और डेस्टिनी की बोले तो तकदीर या नियति, जो कुछ पंक्तियों से बताना चाहूंगा, क्योंकि आप लोग भी सोच रहे होंगे, ऊपर वाले शेर का सही जगह कहां है
होंगे कोई जिनकी है डगर, किसी मंजिल की तलाश में
आवारगी मेरी उस रहगुज़र, रहनुमा जिसकी मिसाल दें
हम चारों दोस्तों का सपना होता था, IIT-JEE, ये नहीं हुआ तो MNREC (NIT ) , यहां नहीं हुआ तो BHU BSc और फिर CAT -IIM से MBA नहीं तो MONIRBA से MBA
हम चारों दोस्तों को नियति, तकदीर अलग अलग ले गई, गौतम और मैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गए, अश्विनी सरकारी अधिकारी, एंड गेस व्हाट एंड वेयर ज्ञानेंद्र पहुंचा
उसी MONIRBA, जिसमें पढ़ने का हम सपना देखते थे, वहां का Director
बहुत बहुत बधाई हो गोलू बोले तो डॉक्टर ज्ञानेंद्र बहादुर सिंह जौहरी, Director, MONIRBA, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
है न शेर चरितार्थ, मेरे बचपन के दोस्त पर
होंगे कोई जिनकी है डगर, किसी मंजिल की तलाश में
आवारगी मेरी उस रहगुज़र, रहनुमा जिसकी मिसाल दें
अब इतनी शेर ओ शायरी में आप भी कह रहे होंगे, भाई बचपन से जवानी तक दोस्तों की बात हुई, और दोस्तानियों का क्या, तो चलते चलते उनके लिए भी दो लाइन ...
तुझे देख कर आज फिर याद आई मुझ को वो घड़ी
बनारस के बचपन बिछड़ी थी मुझसे जो इक वो परी
Congratulations ! बधाइयाँ !
Dr Gyanendra Bahadur Singh Johri
DIRECTOR - MONIRBA
Motilal Nehru Institute of Research and Business Administration
University of Allahabad



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