महज़बीं सैय्यारा

किसी आसमां की परी तुम, और ज़मीं पे आवारा हम,

जैसे महज़बीं की तलाश में कहकशां के सैय्यारा सनम,

बड़ी रौ में थी उम्र-ए-रफ़्ता जब जवां थे हमारे कदम

- अभय सुशीला जगन्नाथ  



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