फिर से तुम गुलज़ार करो

फ़िर से मैं हकलाते होठों, वही इश्क़-ए-इज़हार करूं,

फ़िर से तुम भी सुर्ख लबों, शरमाते हुए इक़रार करो..

फ़िर से मैं इक वादा करूं, फ़िर से तुम ऐतबार करो

फ़िर से मैं तेरी राह देखूं, फिर से तुम इंतजार करो..

मैं और मेरी आवारगी, सोचते हैं यूँ ही कभी कभी

बेजा हो चली जिंदगी को, फिर से तुम गुलज़ार करो..


                                                     - अभय सुशीला जगन्नाथ 






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