साइकिल की तीलियों अटकी, खिड़की की वो जालियाँ

फ़िर साइकिल की तीलियों अटकी, खिड़की की वो जालियाँ मुस्कुराई,

बनाती रही जो दरमियाँ हमारे, बिना चौथ अक्सर इक झीनी परछाई,

भूखे सताने की, रूठने मानने की, अल्हड़ कहानी फिर याद है आई...

#KarwaChauth #करवाचौथ


                                                     - अभय सुशीला जगन्नाथ  


Comments

Popular posts from this blog

राधा-कृष्ण ! प्रेम के सात वचन !

बिन फेरे हम तेरे

परी-सुरसुन्दरी, अप्सरा-देवांगना