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Showing posts from November, 2018

Baby, Baby, Baby Oh

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Ooh whoa, ooh whoa, ooh whoa You know you love me, I know you care Just shout whenever and I'll be there You are my love, you are my heart And we will never, ever, ever be apart Are we an item? Girl quit playin' We're just friends, what are you sayin' Said there's another, look right in my eyes My first love, broke my heart for the first time And I was like baby, baby, baby oh Like baby, baby, baby no Like baby, baby, baby oh I thought you'd always be mine (mine) Baby, baby, baby oh Like baby, baby, baby no Like baby, baby, baby ooh I thought you'd always be mine Oh for you, I would have done whatever And I just can't believe we ain't together And I wanna play it cool But I'm losin' you I'll buy you anything I'll buy you any ring And I'm in pieces, baby fix me And just shake me, 'til you wake me from this bad dream I'm goin

शायद तुम जैसी ही वो परी थी

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परियों की वो कहानियां , जो दादी-नानी कभी सुनाती थी, वो भी क्या फ़साना था , शायद तुम जैसी ही वो परी थी , जब बचपन का ज़माना था... कागज़ की वो नाव थी, बारिश का मौसम सुहाना था, नीम की डाली से कभी, घंटो झूला झुलाना था, कच्चे आम और खट्टी इमली खाकर, क्या खूब वो जीभ चटकाना था, शायद तुम जैसी ही वो परी थी, जब बचपन का ज़माना था... बालू और मिटटी का वो, घरौंदा तोड़ना बनाना था, सुन्दर गुड़िया की वो शादी, किसी लकड़ी के गुड्डे से कराना था, फूल पत्ते की वो सब्ज़िया, बनाना और खिलाना था, गुड़िया का श्रृंगार कर, क्या खूब वो इठलाना था, और गुड्डे गुड़िया की लड़ाई पर, जिसको रूठना मनाना था, शायद तुम जैसी ही वो परी थी, जब बचपन का ज़माना था ... वो दौड़ कर कहना आ छु ले, फिर चुपके से छिप जाना था, कोयल और बिल्ली की आवाज़ दे, साथी को बरगलाना था, छुपन छुपाई का वो भी, क्या हसीनअफसाना था, शायद तुम जैसी ही वो परी थी, जिसको खेल खेल में ढूंढ कर लाना था ...                                           -  अभय सुशीला जगन्नाथ

इत्तिहाद-ए-हुस्न-ओ-इश्क़

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इत्तिहाद-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का, तौबा ये शबाब, हम  जवान होते गए , वो बेइन्तहा खूबसूरत, हमारी खुशनुमा ज़िन्दगी का, शायद यही लब्बोलुआब ... एक महताब तो दूजा आफताब                         -  अभय सुशीला जगन्नाथ ------------------------------------------------------- तुझ पर लिखू, या उस पर लिखू, बड़ी कश्मकश है , किस पर लिखू, अच्छा लिखा तो, तू इतराएगा, खूबसूरत लिखा तो, हुस्न गुरुर खायेगा, तुम दोनों में जाने क्या नशा है, लिखते ही सुरूर सा छाये, तुझसे बस इतनी ही इल्तज़ा है, ए खुदा तू देख, इस मुक्कमल जोड़ी को, कोई भी नज़र न  लगाए ...                        -  अभय सुशीला जगन्नाथ --------------------------------------------------------- आप का ये साथ, जैसे चाँद और रात, शुब्हानल्लाह ! ये मुक्कमल दीद, जैसे चाँद रात वाली ईद                         -  अभय सुशीला जगन्नाथ आप का ये साथ, जैसे चाँद और रात, चाँद रात को ईद कहते हैं , और शायद इसको , मुक्कमल दीद कहते हैं ...                           -  अभय सुशीला जगन्नाथ

मेरा हुस्न, मेरा गुरुर

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मेरा हुस्न मेरा गुरुर  तुमको देखा तो समझ में आया लोग क्यों बुत को खुदा मानते हैं बुत में बुतगर की झलक होती है इसको छूकर उसे पहचानते हैं पहले अंजान थे, अब जानते हैं तुमको देखा तो समझ में आया तुमको देखा तो ये मालूम हुआ, लोग क्यों इश्क़ में दीवाने बने ताज छोड़े गए और तख्त लुटे कैस-ओ-फरहाद के अफसाने बने पहले अंजान थे, अब जानते हैं लोग क्यों बुत को खुदा मानते हैं तुमको देखा तो ये समझ में आया तुमको देखा तो ये अहसास हुआ ऐसे बुत भी हैं जो लब खोलते हैं जिनकी अंगड़ाइयां पर तोलती हैं जिनके शादाब बदन  बोलते हैं पहले अंजान थे, अब जानते हैं लोग क्यों बुत को खुदा मानते हैं तुमको देखा तो ये समझ में आया हुस्न के जलवा-ए-रंगीं में खुदा होता है हुस्न के सामने सजदा भी रवां होता है दीन-ए-उल्फ़त में यही रस्म चली आई है लोग इसे कुफ़्र भी कहते हों तो क्या होता है  पहले अंजान थे, अब जानते हैं लोग क्यों बुत को खुदा मानते हैं तुमको देखा तो ये समझ में आया

माँ

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हक़्क़ शम्स "सा नू र", हक़्क़ आशना शरमाया चाँद, गोया खुदा "सा नू र "               -    - अभय सुशीला जगन्नाथ ------------------------------------------- फिरता रहा दर बदर, जानने को , तेरे नूर का राज़ -ए-असर , आकर तुझ पर, मेरी आवारगी बे-असर, निज़ाम-ए-हस्ती जो चला रहा, बदस्तूर ... माँ तेरा ये नूर                             - अभय सुशीला जगन्नाथ 

मुलाक़ात

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ए दोस्त , न मिलने का इलज़ाम लगा, मुकदमा ही कर दे मुझ पर, कम से कम,  तारीख दर तारीख, मुलाक़ात तो होती रहेगी ... गर फैसला भी आया तो, मुलाकाते शाम की, सजा काटने की यादें सजेंगी ...                   - अभय सुशीला जगन्नाथ                  

माँ बाप

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घटा कर मुझ से, जोड़ दे माँ बाप में , ए खुदा अब जितनी भी, उमर बाकी है , देखें जरा यम में , क्या कसर , क्या असर बाकी है , जब तलक मुझ पर, उनकी नज़र बाकी है ...                                                                                                                             - अभय सुशीला जगन्नाथ ---------------------------------------------- अवध की शाम बीती , सुधाकर  मद्धम  हुआ , उदयन हुआ सनी , अमेयविक्रमा की इल्तज़ा , स्वर्ण स्वरूपा हो ज़िन्दगी , शिखा सी हो कामयाबी , उषा  किरणों  की  यही  दुआ ...                      - अभय सुशीला जगन्नाथ ------------------------------------ Beam from Sunbeam Gleams like Grandfather, Radiates like Grandmother, Sparkles like Father, Twinkles like Mother, Glitters like Brother, Glows like Uncle, Not Least, but last, Illuminates like Aunt, That's what Sunny want ... Its "AWAARAGI" chant                               - Abhay Sushila Jagannath Elegant & Graceful, You are, No words can

पैगामे "अहमद", मोहब्बत सरोकार

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मांगी थी ऐ दोस्त, तेरे लिए मन्नत मिल गयी ऐ यार, तुझे वो जन्नत, पहला है प्यार, पहला ही क़रार खुदाए "अमरीन" का इकरार, पैगामे "अहमद", मोहब्बत सरोकार ...                         - अभय सुशीला जगन्नाथ The journey of love had started, Long awaited desire going to end, The skies are down and bend, To meet the earth, his only friend, Two souls are getting united Everywhere is weather of love, The god itself came down to attend, For wandering and roaming souls, To befriend, comprehend and blend ….                                         - Abhay Kumar Rai

I am not poet

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I am not poet, But the eyes, Beautiful and gazing, Piercing down the brains & razing, Straight to my heart dazing, Dating with those eyes, Moods of word wanders, Sticking with each other; embracing, Sentiments become prose, Emotions become poetry …                    - Abhay Sushila Jagannath                                     

Wonderful feeling!

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What is childhood friendship? I haven’t understood dear, But when friends came near, My emotions, my sentiments, Both get perplexed to rear, That perplexity doesn’t become clear. In such complexity I gained ‘Insight’, Now I am not wrong but right, It’s my childhood friend’s sight. Glimpse after such a long time, In heart that peep. In mind that creep, Raising the “ wonderful feeling “ Deep and deep ...                        - Abhay Sushila Jagannath