चार आने की रंग की पुड़िया, वो गुलाल-अबीर, वो स्याही वाली कलम जिसने बनाये, सफ़ेद यूनिफार्म पर नीली और लाल लकीर, वो टीने की पिचकारी, वो लकड़ी का ढोल-मंजीर, किसी दुकानदार के पास मिलेगा क्या ? वो गुजिया, वो पिड़ुकिया, हाथ के बने पापड़-तिलौड़ी, छोला और वो मालपुआ, एक दूसरे के घर में हर माँ ने, जो बुला बुला कर खिलाया, वो माँ के हाथ का स्वादिष्ट व्यंजन, किसी दुकानदार के पास मिलेगा क्या ? वो बहन की सजाई टेबल और उस टेबल पर, हाथ की कढ़ाई वाला खूबसूरत क्लॉथ, टेबल पर शीशे के पतीले में गुलाब जामुन, नक्काशित चीनीमिट्टी के बर्तन में सेवई-खीर, और उस से मिलते जुलते कटोरी चम्मच, टेबल पर हर निगाह जिसे ढूंढती थी, वो बहन का बनाया, दही बड़ा का बड़ा डोंगा, और ट्रे में सजे मसाले और नमक-मिर्च, वो टेबल क्लॉथ और उसपर काढ़े मुरली-मोरपंख, किसी दूकानदार के पास मिलेगा क्या ? वो दोस्त की साइकिल, वो पापा की स्कूटर, हाँ ! वही साइकिल ! जिस पर तीन लोग, बैठने-चलाने के लिए लड़ते हों, हाँ ! वही स्कूटर ! जिसपर छह लोग, बड़े आराम से, अंड़स-अंड़स कर अंटते हों, गली-गली और घर-घर घूमते, सुन्दर लड़कियों के घर ढूंढ...