मेरा जरिया-ए-इबादत

न माला, न मंतर,
न पूजा, न सजदा
फिर कैसी इबादत,
तू जूनून-ए-सुकून,
तू मेरी आदत,
शायद तू नहीं,
न तेरी मोहब्बत !
तेरा खुदाया अक्श,
मेरा जरिया-ए-इबादत !

                    - अभय सुशीला जगन्नाथ


एक दूजे से नहीं,
रिश्ता खुदा से है मोहब्बत का,
एक दूजे के अंदर रचा बसा,
जो जरिया तेरी मेरी इबादत का,
शामिल है वो तुझमें मुझमें,
बचपन से एक आदत सा

                    - अभय सुशीला जगन्नाथ


एक दूजे से नहीं,
उस खुदा से मोहब्बत है,
जो शामिल है आदत सा,
एक दूजे के अंदर बसा,
जो जरिया है इबादत का !

                       - अभय सुशीला जगन्नाथ 

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