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Showing posts from October, 2021

तू कहीं और मैं भी कहीं

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 मैं और मेरी आवारगी, सोचते हैं कभी कभी, वो भी क्या दिन थे हसीन, जब दिन रात तू कहती रही... "तू है तो मैं भी हूँ,  तू नहीं तो मैं भी नहीं" ...और देख तू आज यही, तन्हाई के आलम में तन्हा, तू कहीं और मैं भी कहीं !                            - अभय सुशीला जगन्नाथ 

करवा चौथ की रात

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मैं और मेरी आवारगी, शब् भर आवारा तारो से, अक्सरहां पूछते हैं ! क्या फिर से कोई ख्वाब  पलकों पर मेरे सजने को हैं, क्या फिर से मैं और तू, शब्-ए-वस्ल पे जगने को हैं, क्या शमा संग परवाना फिर जल जायेगा,,,   या फिर सहर-ए-पहर पे रुखसार से तेरे, आफताब बन हया मुझपर बरसने को है, क्या हुस्न-ए-जानाँ फिर क़यामत-ए-कहर ढायेगा,,, फिर अहल-ए-दिल आवारा तारों संग, करवा चौथ की रात छत पर आएगा, शब्-ए-वस्ल पे जब वो, नक़ाब-ए-रुख़ हटाएगा, तब क्या चांदनी, और क्या जन्नत-ए-रागिनी, जब चाँद ही उस रात,  तुझे देखते शरमा जायेगा ....                - अभय सुशीला जगन्नाथ 

माँ के लाल आँचल में, मैं उसका लाल !

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लाल सिन्दूर लगाए,  लाल जोड़े में सजी,  लाल चूड़ी पहने,  लाल चुनरी ओढ़े,   माँ के लाल आँचल में,  मैं उसका लाल !   अधखुली आँखों से जब भी मैं देखू, वही द्रिश्य रोज़ दिखाओ ना, लाल आँचल कमर में कस कर, झाड़ू आँगन में लगाओ ना, और शरारतों पर उसी झाड़ू से, कू-लक्षण उतारने को डराओ ना ! अम्मा ! माँ ! फिर आओ ना... फिर से उस लाल आँचल में, गेंदा, बेला संग लाल-गुलाब, अम्मा तुम लेकर आओ ना, या पास के मंदिर से जाकर, फूल-माला मुझसे ही मंगवाओ ना, और देवी-भगवन् चरणों में, वो फूल-माला फिर चढ़ाओ ना, और उनकी भीनी खुशबू से, घर-आँगन सुगन्धित कर जाओ ना ! लुटिया-जल लिए आँचल में,  तुलसी पत्ता माँ मिलाओ ना, और भोर की ललित लालिमा लिए, लाल अगन में तपते सूरज की, फिर से तपिश मिटाओ ना, और आँचल में कुमकुम-थाल लिए, बलवारी-बाबा भी लाल कर जाओ ना ! माँ ! लाल आँचल माथे पे लिए, फिर से किचन में जाओ ना, और माथे पर पसीना बहे जब, तब मुँह पर आँचल फिराओ ना, और मेरे नन्हे जूठे हाथो को, उस आँचल में पोंछवाओ ना... सुनो ना माँ ! बहन की आँख आज भी, प्याज काटने से भर आती है, अपने आँचल से रगड़ कर उसके, और मेरे भी आँखों में भरे, आंसू तुम पोंछ जाओ ना

लंकेटिंग और चाय

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लंकेटिंग की पहली चाय से, आया था पहला इश्क़-ए-उबाल, ऊफ्फ वो रिमझिम बारिश, और तेरे बदन- और -चेहरे पर, शरारती बूंदो का कमाल, गरम चाय की चुस्कियों संग, तेरी शर्मीली मुस्कियों का जमाल... उसके बाद तेरा अदा संग, ज़ुल्फ़ें उँगलियों से हटा, तीर-ए-नज़र से करना बेहाल... ना पूछ ! क्या खूब आया था, पहले-पहल इश्क़-ए-उबाल, जब सुनयना ने दिखाया, अपनी आँखों का कमाल... सुनो ना सुनयना ! तुझसे और इस चाय से जो, अब तलक मेरी मोहब्बत है, उसी इश्क़-ए-उबाल वाली, लंकेटिंग के चाय की बदौलत है ! Remembering Manish Mishra and his Love Story !                             - अभय सुशीला जगन्नाथ  लंकेटिंग की पहली चाय का, वो पहला इश्क़-ए-उबाल, ऊफ्फ वो रिमझिम बारिश, तेरे बदन-और-चेहरे पर, शरारती बूंदो का कमाल, गरम चाय की चुस्कियों संग, शर्मीली मुस्कियों का जमाल... उसके बाद अदा संग, ज़ुल्फ़ें उँगलियों से हटा, तीर-ए-नज़र से करना बेहाल... ना पूछ ! क्या खूब आया था, पहले-पहल इश्क़-ए-उबाल, जब सुनयना ने दिखाया, अपनी आँखों का कमाल... सुनो ना सुनयना ! तुझसे और इस चाय से जो, अब तलक मेरी मोहब्बत है, उसी इश्क़-ए-उबाल वाली, लंकेटिंग चाय की बदौलत है !