माँ के लाल आँचल में, मैं उसका लाल !

लाल सिन्दूर लगाए, 
लाल जोड़े में सजी, 
लाल चूड़ी पहने, 
लाल चुनरी ओढ़े,  
माँ के लाल आँचल में, 
मैं उसका लाल !  

अधखुली आँखों से जब भी मैं देखू,
वही द्रिश्य रोज़ दिखाओ ना,
लाल आँचल कमर में कस कर,
झाड़ू आँगन में लगाओ ना,
और शरारतों पर उसी झाड़ू से,
कू-लक्षण उतारने को डराओ ना !
अम्मा ! माँ ! फिर आओ ना...

फिर से उस लाल आँचल में,
गेंदा, बेला संग लाल-गुलाब,
अम्मा तुम लेकर आओ ना,
या पास के मंदिर से जाकर,
फूल-माला मुझसे ही मंगवाओ ना,
और देवी-भगवन् चरणों में,
वो फूल-माला फिर चढ़ाओ ना,
और उनकी भीनी खुशबू से,
घर-आँगन सुगन्धित कर जाओ ना !

लुटिया-जल लिए आँचल में, 
तुलसी पत्ता माँ मिलाओ ना,
और भोर की ललित लालिमा लिए,
लाल अगन में तपते सूरज की,
फिर से तपिश मिटाओ ना,
और आँचल में कुमकुम-थाल लिए,
बलवारी-बाबा भी लाल कर जाओ ना !

माँ ! लाल आँचल माथे पे लिए,
फिर से किचन में जाओ ना,
और माथे पर पसीना बहे जब,
तब मुँह पर आँचल फिराओ ना,
और मेरे नन्हे जूठे हाथो को,
उस आँचल में पोंछवाओ ना...
सुनो ना माँ !
बहन की आँख आज भी,
प्याज काटने से भर आती है,
अपने आँचल से रगड़ कर उसके,
और मेरे भी आँखों में भरे,
आंसू तुम पोंछ जाओ ना !

गोधूलि बेला में माँ फिर से,
संध्या दिया जलाओ ना,
गणेश-लक्ष्मी से आरती शुरू कर,
कोने-कोने वो दिया दिखाओ ना...
और लाल चूड़ियों के खनकते हाथों से,
दिए की लौ हम तक पहुंचाओ ना,
और बुरी नज़र माथे से सबके,
उस लौ से ही उतार जाओ ना !

माँ ! 
देखो रात हो रही घुप अँधेरी !
डरे हुए इस लाल को अम्मा,
लाल आँचल में अपने छिपाओ ना,
और फिर कोई लोरी गा के,
मेरा भय से ध्यान भटकाओ ना,
मुझे "अभय" कर जाओ ना !
फिर माथे पर तेल चुपड़ कर ,
लाल आँचल में अपने सुलाओ ना,
और अपने ख़्वाबों-सपनों में हमको,
"बहुत बड़ा आदमी" बनाओ ना,
फिर उन ख़्वाबों-सपनों के लिए,
उसी लाल आँचल को चुपके से,
माँ दुर्गा के चरणों में फैलाओ ना  !

लाल सिन्दूर लगाए, 
लाल जोड़े में सजी, 
लाल चूड़ी पहने, 
लाल चुनरी ओढ़े,  
माँ दुर्गा के चरणों में,
अपनी अम्मा ! माँ का,
लाल आँचल फैलाये,
मैं उसका लाल !

    - अभय सुशीला जगन्नाथ


Comments

Popular posts from this blog

राधा-कृष्ण ! प्रेम के सात वचन !

परी-सुरसुन्दरी, अप्सरा-देवांगना

बिन फेरे हम तेरे