दीवानों के सपने
दीवानों के सपने देखने का, हिसाब न पूछो ऐ जनाब ! अक्सरहां खोजते रहते हैं, किसी कमसिन मे आफताब, तो किसी नाज़नीन मे माहताब ! इंतेहा देखिए इनके ख्वाबों की, हर एक से ये करते फिरते हैं, इश्क़ बेइंतेहा तो आशिक़ी बेहिसाब ! गर कभी हक़ीक़त हो जाये वो ख्वाब, तब दीवाना-ए-आलम न पूछिये जनाब, पगला जाते हैं देखकर वो हुस्न-ए-शबाब ऐसे ही सपने में खोए एक ..... - अभय सुशीला जगन्नाथ