हाथों में वही लकीर
तू आ कर मिला जा,
फिर एक बार हाथ से हाथ,
तुझसे अपनी तकदीर है सजानी,
जो उस ना-खुदा ने नही है खींची,
अब हाथों में वही लकीर है बनानी...
तेरे हाथों से हाथ मिलाने को
संग अल्हड़ खिलखिलाने को,
और नए वर्ष में नए खुशनुमा,
ख्वाब-ओ-ख़यालात सजाने को,
बेचैन और बेताब,
मैं और मेरी आवारगी...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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