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Showing posts from July, 2022

वेब सीरीज और दिलकश जाल-शृंखला

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ये आज के, वेब सीरीज के दीवाने ! उस दिलकश जाल-शृंखला को,  क्या जानें, क्या पहचाने ! इश्क़-ए-मशरूफियत में, जब शुरू करते थे,  अंतहीन जिक्र-ए-यार दीवाने ! सजा शायरों की रंग-ए-महफ़िल, लगाते थे दौर-ए-जाम मस्ताने ! रोज़ो शब् से रोज़ो सहर तक, यूँ ही अनवरत थे जलते रहते,   शमा के संग दीवाने-परवाने !   उनकी एक कातिलाना मुस्कान,  और दो नैनो से बयान होते,  अनगिनत हसीन-ओ-रंगीन अफ़साने! ये आज के, वेब सीरीज के दीवाने, उस दिलकश जाल-शृंखला को, क्या जानें, कैसे पहचाने !                    - अभय सुशीला जगन्नाथ

कैद-ए-रिहाई

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ख़यालों की रहगुज़र से, जरा बच कर गुज़रना, कहीं वो हसीन हमनशीने, और उनकी सुनहरी यादें, तुझे अपने ख़यालों की गिरफ्त से, इस बार कैद-ए-रिहाई ही न दे                   - अभय सुशीला जगन्नाथ

Trees पेड़

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बड़ी कश्मकश में हूँ  क्या करूँ ? शहर में रहता हूँ, और सपनो में गांव आता है,,,, यहाँ रोज़ाना शहर में पेड़ कटते हैं, और हक़ीक़त में राहत-ए-छाँव जाता है,,,  Trees are the words, through which, Environments writes poetry... Flowers are its adjectives, which brings in the beauty... Birds are the musicians, chirping & singing in boogie...                            - Abhay Sushila Jagannath

तू उसी टैप से निकलती है

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तू उसी टैप से निकलती है, मैं अंजुरी भर पी जाता हूँ ! पर तू रत्ती भर न खुलती है, मैं हर रोज़ टैप को घूमता हूँ ! वो यादें जब कभी मचलती है, मैं बेचैन-ओ-बेताब हो जाता हूँ ! अब भी आर्ट्स फैकल्टी सपनो में, अक्सरहां आवारगी कर आता हूँ ! आज की आवारगी मेरी नहीं, एक नायक की, Ninteen साल के, किशोर Teenager की ! बी०एच०यु० के फैकल्टी ऑफ आर्ट्स के अंदर, कला संकाय के मध्य का वृहद् मैदान, मैदान में चौरास्ता सड़क, दो सड़क फैकल्टी की बिल्डिंग से अंदर बहार आने जाने के लिए, और दो सड़क उनको क्रॉस करती हुयी बी०एच०यु० के ही अन्य फैकल्टी को जोड़ने वाली... मेरे इस नायक की एंट्री होती है पूरब दिशा से, हाथ में एक नोटबुक लिए , नायक नीली जीन्स, ग्रे टी शर्ट और वुडलैंड का जूता पहने, पैदल आर्ट्स फैकल्टी की पश्चिमी बिडिंग में एंट्री कर रहा है, जहाँ गणित की वुमन्स कॉलेज की सुन्दर छात्राओं और साइंस व् आर्ट्स दोनों फैकल्टी के, युवा छात्रों की संयुक्त कक्षाओं में, पठन-पाठन कार्यक्रम चला करते थे.... और साथ में चला करते थे... Teenage युवाओं के Evergreen नवयौवनाओं के साथ, चोरी चोरी व् चुपके चुपके, किशोरावस्था के अल्हड़, आँखों ही आ

लमहे और लहरे

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 कुछ लमहे और लहरे, बड़ी नज़ाकत से, आपको छू कर गुज़र जाती है, उस नज़ाकत में, ख़ताओं का कहां पता चलता है, जो किश्तियों संग सदियों सजा देने को, कभी कभी यूँ ही उमड़ जाती हैं... लहरों संग लम्हों ने खाता की थी, किश्तियों संग सदियों ने सज़ा पाई है...                         - अभय सुशीला जगन्नाथ 

आवारा फिरते थे, जिन गलियों में

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आवारा फिरते थे, जिन गलियों में, मैं और मेरी आवारगी, खड़े है अब भी, उसी मोड़ पे, तेरी आशिकी, मेरी दीवानगी... फुरसत मिले, तो देख जाना, वो इश्क़-ए-बानगी....                         - अभय सुशीला जगन्नाथ 

नूर-ए-अज़ल का रोज़-ए-अज़ल से

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अपनी सांसो का पता नहीं,  उनकी धड़कनों पे ऐतबार है, नूर-ए-अज़ल का यूं हमें,  रोज़-ए-अज़ल से इंतज़ार है !                       - अभय सुशीला जगन्नाथ  I am not relying, on my HeartBeats, But I have faith, on my SweetHeart... That's how I am waiting, for the Eternal light... From first day of Eternity !                - Abhay Sushila Jagannath