आज आया हूँ अपने घर

 सालों रहे शहर दर-बदर,

यूँ मिलकर जाने क्यों लगा,

आज आया हूँ अपने घर !

रुक, ज़रा सांस लेने दे,

थोड़ी देर साथ ठहर,

दिल की धड़कने जाने क्यों,

बेकाबू धड़क रही बेकदर ! 

                      - अभय सुशीला जगन्नाथ 



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