ना पूछो हाल हम अवारों का
ना पूछो हाल बचपन के यारों का,
डीoएलoडब्लयू से बिछड़े धारों का,
तेरी किताब-ओ-कलम से आशिक़ी,
और आवारगी हम जैसे आवारों का !
- अभय सुशीला जगन्नाथ
ना पूछो हाल हम अवारों का,
डी एल डब्लयू से बिछड़े धारों का,
उनकी वो किताब-ओ-कलम से आशिक़ी,
और अपनी बैट-बॉल लिए सहर-ए पहर,
आवारगी करते खेल के प्यारों का ...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
याद-ए-माज़ी की आवारगी में,
आवारा रोज़ एक बार,
पहुंचता तेरे शहर है,
बड़ी कशमकश-ए-दहर है,
क्या अब भी यहीं वो दर्द-ए-जिगर है ?
वो चुनता हर एक सहर है,
फिर उनको अल्फ़ाज़ों में,
बुनता रहता एक एक पहर है,
कोरे कागज़ों पर उतरते,
उन जज़्बातों का अंदाज़-ए-बयां,
क्या उसी दर्द-ए-जिगर का असर है ?
या फिर,
अभी बाकी ज़िन्दगी की सहर है,
जिसके लिए आवारा तेरी आवारगी में,
रोज़ एक बार पहुंचता तेरे शहर हैं ...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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