क़त्ल-ए-इंतज़ाम ले आया...
मैं आवारा, देख तेरी आवारगी में,
जन्नत-ए-नूर का अरमान ले आया,
दिल-ए-नादान के सुकून की खातिर,
हुस्न-ए-जाना का हुस्न-ए-गुमान ले आया...
मैं और मेरी आवारगी क्या,
खुदा भी तुझे देख सोचता होगा,
इस अप्सरा को जन्नत से उतार,
मैं भला ये किस जहान ले आया...
दीवानो को ज़िन्दगी देने में शायद,
उनका क़त्ल-ए-इंतज़ाम ले आया...
- अभय सुशीला जगन्नाथ
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