DLW के कम्युनिटी हॉल की, और उस सुंदर दुर्गा-पंडाल की, दशक नब्बे के दिन-ओ-साल की, छोटी सी कहानी है ये उस स्टाल की, मिली थी जहां वो, गोलगप्पा कमाल की... नाज़ुक बताशा, सूजी सी गोरी-भूरी, छोले सी मखमली, प्याज़ सी कुरकुरी, नींबू सी चटक, आमचूर की खटास पूरी, गुदाज़ आलू सी भरी, टमाटर पूरी रसभरी, मिर्च सी तीखा-लाल, झन्नाटेदार एकदम खरी, इमली सी खट्टी-मीठी, चाट मसाला चटक भरी... गुप-चुप फुचके सी नमकीन थी, गोलगप्पा रंगीन थी ! "शताक्षी" बीच "कामाक्षी" संग, दुर्गा-पंडाल की यादों में मलंग, मैं और मेरी आवारगी ! और "सोनाक्षी" के चटखारे रंग... - अभय सुशीला जगन्नाथ ------------------------------------- DLW है आशना, मुझे ये बता गयी वो भूली दास्तान जब याद आ गयी -------------------------------------- शीतल हवाओं में, खुशबुओं के झोंके कौन सी बंदिश है, जो कभी इन्हें रोके... --------------------------------------- अब तलक सब याद रहा मुझ में तू, तेरे बाद रहा... -------------------------------------- हरे पत्ते के अंजुर में बै...