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Showing posts from March, 2024

मलाल

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= इस बरस फिर से वही मलाल रह जायेगा  हाथो में तेरे नाम का गुलाल रह जायेगा  = मलाल है मुझे भी तेरे गुलाबी गाल का, रंग बिना दिल-ए-बेताब-ओ-बेहाल का                                      - अभय सुशीला जगन्नाथ  भीगी थी उस होली के रंग, वो अप्सरा की काया सी, तन-मन मेरा रंगने वाली, यकीनन जन्मों का साया थी                                              - अभय सुशीला जगन्नाथ 

बिना गुलाल के वो गुलाबी गाल

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चौबारे और ख़िड़कियों पर था देखा, बिना गुलाल के वो गुलाबी गाल, हवाओं उड़ाकर बसंती गुलाल, पीहर ने था पियरी रंगा, नैहर में वो हुस्न-ए-बेमिसाल !                           - अभय सुशीला जगन्नाथ                  

जवानी लिखते हैं

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उठा कर पुराने कुछ कोरे कागज़, चल एक रंगीन कहानी लिखते हैं, अल्लहड़-ओ-आवारगी भरी तेरी-मेरी, आवारा दीवानगी को जवानी लिखते हैं शाम-ओ-सहर के अपने वो चर्चे, शब-ए-महफ़िल के तेरे वो किस्से, कहानी वो रूमानी-ओ-रूहानी लिखते हैं                                    - अभय सुशीला जगन्नाथ 

सरयू-गंगा संगम

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 जाते फगुआ चइत ली अंगड़ाई, कोयलिया कुहुकि अमवा बऊराई,     एही सरयू-गंगा संगम सदियन, नाथ बाबा भोरे गइहें  मानस चौपाई,  जीतन घाटे बाप-बेटा, आ जहाज घाटे माई-बेटी, कर-जोर डुबकी लगायी                                                                                       - अभय सुशीला जगन्नाथ  --------------------------------------------------------------------------------------- जाते फगुआ चइत ली अंगड़ाई, कोयलिया कुहुकि अमवा बऊराई.. एही सरयू-गंगा संगम सदियन, नाथ बाबा के भोरे-भोरे मानस चौपाई.. जीतन घाटे बाप-बेटा, आ जहाज घाटे माई-बेटी, कर-जोरे डुबकी लगायी.                                                                                     - अभय सुशीला जगन्नाथ 

शक्ति ! तू फिर वसलत रंग, नहीं तो शिवाय फुरकत रंग...

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तू होली जैसी आती है, चेहरों के रंग बदल जाते हैं, जब होलिका सी दहकती है, जाने कितनों के दिल जल जाते हैं, तू जब पलाश सी महकती है, खिल फागुन, चइत में ढल जाते हैं,   तू ही है होली सतरंगी, फगुआ की फ़ाग मनरंगी, मस्त झूमती नवयौवन संगी, पूरवा बसंती बयार बे-ढंगी ! कातिक रंग, तू अगहन रंग भादो रंग,  तू सावन रंग, बारहो मास का मन भावन रंग, शाम-ओ-सहर का पिन्हा रंग, पल पल आठों पहर तू है नौरंग ! तू माँ का रंग, है तू बेटी रंग, नैहर-पीहर का तू आँगन रंग, नींदों का रंग, तू करवट रंग, ख़्वाबों पे पड़े सलवट का रंग, तू ही है हर हसरत का रंग ! ऐ विसाल रंग ! ऐ फ़िराक रंग ! मस्त झूमती तू नवयौवन संग, बयार बे-ढंग बन पूरवा बसंत... शक्ति ! तू फिर वसलत रंग, नहीं तो शिवाय फुरकत रंग...                        - अभय सुशीला जगन्नाथ  

भूली यादों का उन्माद

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भूले से फिर याद आ गए, वो भूले खाबों-जज़्बात, बचपन की वो भूल भी, आज भूल के भी है याद, भूल के भी भुला ना सका, तुझे और तेरी हर बात... मैं और मेरी आवारगी... और भूली यादों का उन्माद                                                  - अभय सुशीला जगन्नाथ