मिले तन्हा दो अकेले

ढूंढ़ते फिर रहे आज फिर, मैं और मेरी आवारगी,

बचपन की अल्हड़ यादें, जवां ख्वाबों के वो मेले...

हसीन उन मंजरों मुस्काते, मिले तन्हा दो अकेले !

                                           - अभय सुशीला जगन्नाथ 


ढूंढ़ते फिर रहे आज फिर, मैं और मेरी आवारगी,

बचपन की अल्हड़ यादें, जवां ख्वाबों के वो मेले...

हसीं उन मंजरों मुस्काते, तन्हा ख़यालों दो अकेले !

अल्हड़ बचपन की युवा जवानी और आवारा संग आवारगी


I've waited far too long for this catch up ! Cause I am proud to have friend like you, and with you, I had the best time always.


Remembering all those School and DLW Days, I was Nostalgic.


The Lunch was amazing and exciting was Evening Tea ! 💞


दिल की गलियों गुजरते, दोनों ने कई खेल खेले,

हसीन उन मंजरों मुस्काते, मिले तन्हा दो अकेले,

ढूंढ़ते फिर रहे आज फिर, मैं और मेरी आवारगी,

बचपन की अल्हड़ यादें, वो जवां ख्वाबों के मेले...

                                               - अभय सुशीला जगन्नाथ 


ढूंढ़ते फिर रहे आज फिर, मैं और मेरी आवारगी,

बचपन की अल्हड़ यादें, वो जवां ख्वाबों के मेले...

हसीं उन मंजरों मुस्काते, तन्हा फ़िज़ाओं दो अकेले !

                                           - अभय सुशीला जगन्नाथ

ढूंढ़ते फिर रहे आज फिर, मैं और मेरी आवारगी,

अल्हड़ यादें बचपन की, जवां ख्वाबों के वो मेले...

मुस्काते मिले आज उन्हीं तन्हा मंजरों दो अकेले !

                                                  - अभय सुशीला जगन्नाथ


ढूंढ़ते फिर रहे आज फिर, मैं और मेरी आवारगी,

अल्हड़ यादें बचपन की, ख्वाबों के जवां वो मेले...

मुस्काते मिले आज उन्हीं मंजरों तन्हा दो अकेले !

                                                 - अभय सुशीला जगन्नाथ



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