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Showing posts from July, 2024

गुदड़ी - लुगड़ी

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बचपन से तुम सुनते आए,  कभी-कहीं थी यशोदा मइया घर घर माखन चोरी करता, था उनका इक लाल कन्हइया... आज दिखाते हैं हम तुम को, विधि विधान में फंसी इक माँ, सीने लगाए बैठी जो गम को , कि मेरा लाल चल गया कहाँ ! दरवाज़े पर इक आवाज़ आयी भिक्षाम देहि, ए बहिनी, ए माई ! आवाज़ से ही वो पकड़ में आया, माँ के ही लाल की वो राम दुहाई ! रोज़ जिन हाथों ने दिया निवाला, आज उन्ही हाथों दे दे माँ गुदड़ी, सब दिन था जिस गोद खिलाया, उस आँचल की मांग रहा लुगड़ी ! हरदम ममता न्योछावर किया माँ, प्यार दुलार बापू की डांट तगड़ी, मांग रहा उस धोती का टुकड़ा, बनाई पिता ने जिससे कभी पगड़ी !  रो रो कर बुरा हाल था माँ का, साथ रो रहा पूरा गाँव वहां का, कल तक जो उनके बीच था खेला, जोगी बन बैठा वो दूजे जहां का ! अंतिम विदाई कर दे भिक्षा माँ, फिर ना जोगी आएगा तेरी नगरी, रखूं निशानी बापू की जीवन भर, दे-दे धोती या पगड़ी की गुदड़ी,  या माँ अपने आँचल की लुगड़ी ! दे दे पिता के धोती-पगड़ी की गुदड़ी,  संग माँ अपने भरे-आँचल की लुगड़ी ! दे दे पिता के धोती-पगड़ी की गुदड़ी,  संग माँ अपने भरे-आँचल की लुगड़ी !                                                         

ख़यालन में खिलीहन फुलझड़ी

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The Earl ! The Nobel ! The Gentle ! जेनके देख, सोचत समझत, टूट गयल दिल के कड़ी... आज गुरु जब दारू लड़ी, तब वही कुल कालेज वाली, ख़यालन में खिलीहन फुलझड़ी... मैं और मेरी आवारगी, आज फेर ओहि ऊहापोह में... एह के धरी कि ओह के पकड़ी                                              - अभय सुशीला जगन्नाथ 

फ़र्त-ए-जज़्बात

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तस्सवुर को सजा के बूंदों में, तहरीर कर ख़यालात भेजे हैं हथेलियों में संजो कर पढ़ लेना, जो फ़र्त-ए-जज़्बात भेजे हैं Writing passionate imagination, On the droplets of rain... I had sent my deep emotion, to breeze your memory lane… Do read the inception, through notable impression… A deed of romantic confession ! 💦................✍️ फ़र्त-ए-जज़्बात = गहरी भावना Deep Emotions तसव्वुर = एहसास पूर्ण कल्पना Passionate Imagination तहरीर = लिखावट Writing                                        - अभय सुशीला जगन्नाथ Your spirit soars high An unstoppable attitude in the sky Awesome 👌 Your Inspiration, Let me Fly, Fly tooooo high ! निकाल कर कभी फुरसत, मिल जा फिर उसी राह में खाली हथेलियों को रख हाथ में, ले जा अपनी पनाह में                                                                  - अभय सुशीला जगन्नाथ शायराना सी है जब ज़िंदगी की फ़ज़ा, तो क्यूँ न ले हम भी शायरी का मज़ा                                             - अभय सुशीला जगन्नाथ

प्लेटफार्म संख्या पांच

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धीरे धीरे दिल की धड़कन, रुकती जा रही है वाराणसी से चलकर, नई दिल्ली को आने वाली, काशी विश्व्नाथ एक्सप्रेस, KV, प्लेटफॉर्म संख्या पांच पर आ रही है ! दिल-ए-स्पंदन से सांसे, लय मिला रही है, ट्रेन की धमक से धक-धक, बढ़ती जा रही है ! यादों की दस्तक ज़ेहन को, कदम-ताल करा रही है ! बरसों पहले छोड़ आये, जो इक अधूरी कहानी, बनारस के प्लेटफॉर्म पे, वो इश्क़ रूमानी, दिल्ली के प्लेटफॉर्म पर, वही मौज-ए-रवानी... इक तूफां उठा रही है, रूमानी इश्क़ आज वही, बन रूहानी आ रही है, इंजन अपने डब्बे को, प्लेटफार्म संख्या पांच पर, खिंचे जा रही है... उस रोज़, ट्रेन की खिड़की से, एक बड़ा सा, टिफिन था मिला, सजाया था जिसमे तुमने, कुछ-शिकवा, कुछ-गिला, सत्तू की पूड़ियों संग खट्टा-तीखा, यादों का लंबा सिलसिला ! आज तहरीर-ए-जज़्बात आंखों से, बहती जा रही है, फिर कुल्हड़ की चाय तू, ठंडी पिला रही है ! वाराणसी से चलकर, नई दिल्ली को आने वाली, काशी विश्व्नाथ एक्सप्रेस, KV, प्लेटफॉर्म संख्या पांच पर आ रही है !                                      - अभय सुशीला जगन्नाथ  ------------------------------------ यादों में ख़यालात, कागज़ पर जज़्बात मैं और

बारिशों में फिर भीगती

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जेहन में लंकेटिंग की, पुरानी वही कहानी आयी, रिक्शे की छतरी हटा, गेसुओं बिखेरे बूंदों की छटा, बारिशों में फिर भीगती, अल्लहड़ वही दीवानी आयी... #रूमानी #मानसून की इक #रवानी ........................................................... लंकेटिंग वाले रास्ते जब, यादों की गली मुड़ जाते हैं, ख़यालों में आवारा यादें, अक्सरहां यूँ ही जुड़ जाते हैं ............................................................. ख़यालों लिए आवारा यादें, लो आज फिर से जुड़ गए, लंकेटिंग करते तन्हा रस्ते, जब तेरी गली को मुड़ गए                                         - अभय सुशीला जगन्नाथ