गुदड़ी - लुगड़ी
बचपन से तुम सुनते आए, कभी-कहीं थी यशोदा मइया घर घर माखन चोरी करता, था उनका इक लाल कन्हइया... आज दिखाते हैं हम तुम को, विधि विधान में फंसी इक माँ, सीने लगाए बैठी जो गम को , कि मेरा लाल चल गया कहाँ ! दरवाज़े पर इक आवाज़ आयी भिक्षाम देहि, ए बहिनी, ए माई ! आवाज़ से ही वो पकड़ में आया, माँ के ही लाल की वो राम दुहाई ! रोज़ जिन हाथों ने दिया निवाला, आज उन्ही हाथों दे दे माँ गुदड़ी, सब दिन था जिस गोद खिलाया, उस आँचल की मांग रहा लुगड़ी ! हरदम ममता न्योछावर किया माँ, प्यार दुलार बापू की डांट तगड़ी, मांग रहा उस धोती का टुकड़ा, बनाई पिता ने जिससे कभी पगड़ी ! रो रो कर बुरा हाल था माँ का, साथ रो रहा पूरा गाँव वहां का, कल तक जो उनके बीच था खेला, जोगी बन बैठा वो दूजे जहां का ! अंतिम विदाई कर दे भिक्षा माँ, फिर ना जोगी आएगा तेरी नगरी, रखूं निशानी बापू की जीवन भर, दे-दे धोती या पगड़ी की गुदड़ी, या माँ अपने आँचल की लुगड़ी ! दे दे पिता के धोती-पगड़ी की गुदड़ी, संग माँ अपने भरे-आँचल की लुगड़ी ! दे दे पिता के धोती-पगड़ी की गुदड़ी, संग माँ अपने भरे-आँचल की लुगड़ी ! ...