हर-सु बस तू ही तू

रफ़ीक़ था तू, अब रकीब भी तू फिर क्यूँ है तेरे वस्ल की ज़ुस्तज़ू क्या करूँ, कहाँ जाऊं, कैसे रहूँ हर-शय में तू, हर-सु बस तू ही तू शाम-ओ-सहर की ये आवारगी और तेरी उसी गली की आरज़ू ... - अभय सुशीला जगन्नाथ #Poetry #Day and #Poet in #Poetic #Personality