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Showing posts from May, 2024

मिले तन्हा दो अकेले

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ढूंढ़ते फिर रहे आज फिर, मैं और मेरी आवारगी, बचपन की अल्हड़ यादें, जवां ख्वाबों के वो मेले... हसीन उन मंजरों मुस्काते, मिले तन्हा दो अकेले !                                            - अभय सुशीला जगन्नाथ  ढूंढ़ते फिर रहे आज फिर, मैं और मेरी आवारगी, बचपन की अल्हड़ यादें, जवां ख्वाबों के वो मेले... हसीं उन मंजरों मुस्काते, तन्हा ख़यालों दो अकेले ! अल्हड़ बचपन की युवा जवानी और आवारा संग आवारगी I've waited far too long for this catch up ! Cause I am proud to have friend like you, and with you, I had the best time always. Remembering all those School and DLW Days, I was Nostalgic. The Lunch was amazing and exciting was Evening Tea ! 💞 दिल की गलियों गुजरते, दोनों ने कई खेल खेले, हसीन उन मंजरों मुस्काते, मिले तन्हा दो अकेले, ढूंढ़ते फिर रहे आज फिर, मैं और मेरी आवारगी, बचपन की अल्हड़ यादें, वो जवां ख्वाबों के मेले...                                                - अभय सुशीला जगन्नाथ  ढूंढ़ते फिर रहे आज फिर, मैं और मेरी आवारगी, बचपन की अल्हड़ यादें, वो जवां ख्वाबों के मेले... हसीं उन मंजरों मुस्कात

स्वेटर की गिरह

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  जीवन की उलझी-उधड़ी, स्वेटर की गिरह खोल जाओ ना, नए ऊन का गोला लिए, माँ आँखों पे वो चश्मा चढ़ाओ ना, फिर से मेरे उन ख़्वाबों की, बुनाई-सिलाई करने आओ ना...                                                             - अभय सुशीला जगन्नाथ 

यूँ खिलते फूल तोड़ सजा

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 तेरे गुलशन में तू बता, क्या गुलों की कमी थी ऐ खुदा यूँ खिलते फूल तोड़ सजा, क्यूँ हमको दिया तूने सजा                                                       - अभय सुशीला जगन्नाथ 

Phoenix from Ashes !

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One Day ! There would be an empty sky, Galaxies would disappear or die ! That Day... Phoenix from ashes will again fly, Cause our love... Was always Divine !                             -          Abhay Sushila Jagannath   एक दिन ! होगा खाली आसमां,  और मिट जायेगा ये जहां, जल जायेगा तारों का गुमां,  फिर इस कहकशां का भी निशां ! उस दिन... उड़ती राख़ फिर रवां-रवां, क़यामत के रोज़ होगा बयां, पाकीज़ा इश्क़ ! तेरा मेरे हमनवां !                          - अभय सुशीला जगन्नाथ  एक दिन ! होगा खाली आसमां,  और मिट जायेगा ये जहां, जल जायेगा तारों का गुमां,  फिर आकाशगंगा का निशां ! उस दिन... उसी राख में फिर रवां-रवां, अजर-अमर प्यार होगा बयां  सदैव दिव्य यहाँ वहां, उस जहां 

बेदस्तक... बेबाक... बेअंदाज !

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तेरे अहसास कभी नहीं रहे, दिल-ए-दस्तक के मोहताज़, धड़कनो में दीदार-ए-यार का, आज भी वही पुराना अंदाज़, बेदस्तक... बेबाक... बेअंदाज ! - अभय सुशीला जगन्नाथ