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Showing posts from February, 2019

छुप छुप कर मुझे पढ़ते हो?

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छुप छुप कर क्यों पढ़ते हो, ज़ज़्बातों को अल्फाजो में मेरे, शायद ढूंढते रहते हो, कि ज़ाहिर तो नहीं कर रहा, शायर-ए-फ़ितरत अदाओं को तेरे, ये दिल में अब तुम भी गढ़ लो, जो तेरा ज़िक्र कर रहा है, उस दीवाने दिल को पढ़ लो, ये क्या ! पहले अक्षर में ही गुम हो ! गौर से पढ़ो, आखिरी सांसो तक तुम हो …                           -  अभय सुशीला जगन्नाथ ------------------------------------------------------ छुप छुप कर मुझे पढ़ते हो?  "उफ" मुझ पर यु भी नजर रखते हो ! छुप छुप कर क्यों पढ़ते हो, शायरी में अल्फाजो को मेरे… सीधे दोस्त का दिल ही पढ़ लो, ये क्या ! पहले अक्षर में ही गुम हो … गौर से पढ़ो आखिरी सांसो तक तुम हो ... तेरी इबादत से दुआ मिलता रहता है, सब ठीक है दिल भी अब यही कहता है                                             -  अभय सुशीला जगन्नाथ सुना है बड़े गौर से देखते हैं वो तस्वीर हमारी, शायद उसमे जान डालने का इरादा है उनका ... वो तो वैसे भी बोलती है, शायद तुझे पता नहीं, खामोश तस्वीर भी तेरी, मेरे लिए लब खोलती है ...                       -  अभय सुशीला जगन्ना

आवारा आदत !!!

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सरफिरा सा मैं आवारा, फिरता रहा दर बदर, फिर मेरी आवारगी को, दिखा नूरानी चेहरा तुम्हारा, अल्लाह-ईश्वर तो देखा नहीं, करने लगा सज़दाए यारा, देखो ये मेरे बंधे हाथ, जुबां पर रब से भी ज्यादा, आने लगा है नाम तुम्हारा, देख ऐसा "गुनाह", मैं और मेरी आवारगी ने, "काफिर" रख दिया नाम हमारा, शायद उसे ये पता नहीं, तू तो रूहानी इल्हाम है, प्रेरणा है, उत्प्रेरक है, रोशन करता रहता है जो, जीवन संघर्ष में हमारा, हरकदम यही सज़दा तुम्हारा, इसीलिए तो तू आज तलक है, उस अल्लाह-ईश्वर से भी प्यारा, अब चुप चाप किये जाएंगे, रब से और भी ज्यादा, तेरा सज़दा, तेरी इबादत, कोई फल दे की न दे, हमारी सलत ... हमारी इबादत, क्या करें मैं और मेरी आवारगी? इसकी यही, आवारा आदत !!!                   -  अभय सुशीला जगन्नाथ

दुआ कर रहे हैं आपके लिए, मैं और मेरी आवारगी !

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मैं और मेरी आवारगी, अक्सर अकेले में सोचते हैं ! क्या हसीं होगा वो समां, मिले होंगे दो दिल जहाँ, पहले अरमान चहके होंगे, फिर जज़्बात बहके होंगे, मिली होंगी आँखों से आँखें, दो दिल बहुत धड़के होंगे, खोये एक दूजे के संग, रंगे दोनों एक प्रेम रंग, उस हसीं पल की, खूबसूरत हसीन रौशनियां, रौशन करती रही होंगी, आपकी खूबसूरत दुनिया, जिस खूबसूरती से खुदा ने होगा आपको संवारा, उस से भी खूबसूरती से, आपने होगा संवारा, एक दूजे का जीवन प्यारा, आपका साथ कभी न छूटा, जाने कितना रिश्ता टूटा, कभी आपके आंसू जो गिरे, मोतियों सा संभालने वो दौड़ फिरे, जाने कौन सी होगी वो बंधन की डोर, जिसको तोड़ने के लिए, आजतक दुनिया ढूंढ रही छोर, जब आज तक न दिखे कभी वो सिरे, झुंझलाकर दुनिया ने आपको नाम दिया, जुनूनी, दीवाने या फिर सरफिरे, एक दूजे की होगी, आपको बेइंतहा चाह, जिसने दिया होगा, आपको मुश्किलों में राह, दुनिया की आप दोनों ने, जो ना की होगी परवाह, और दिया एक दूजे के साथ, और एक दूजे का निबाह नज़र न लगे, खुदाया ये संग, खुदा करे पसंद आये आपको, सालगिरह के ये खुशनुमा रंग, सोचते हैं अके

"I want to see you on TOP, Believe in yourself "

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Goddess Minerva !!! My memories, Golden days of my childhood, Close to my heart, very sweet, Rainy days brought drizzling music, And we boogie like gypsy on street, With all our boats in the rainy sea, Sailing as we were Kings & Queens, The whole world down under our feet … Teenage memories, The heart learnt “Love”, We all felt its beat, Beautiful, Gorgeous & Stunning Girls, Some Goddess Durga, Some Mary, Some Fatima or Zarah, I too saw the soul of Minerva, Inspirational, Motivational and Illuminating, Goddess of wisdom, knowledge and writing, Felt & sensed her insight,  So powerful and en-lighting ! Even today !  Whenever I loose my focus, She comes thus, Illuminating like sun ray, Inspires me and say, "I want to see you on TOP, Believe in yourself "  Motivating me this way ! I call that Eva, Goddess Minerva !!!                      - Abhay Sushila Jagannath

शिव की जटा से निकलती गंगा और चाँद

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हिमालय पर्वत की खूबसूरत, सुनयना शिखा ने, शांत निहारते, चाँद को कहा कि, क्यों चुपचाप, रोज़ तू मुझे देखता रहता है, इस धरती पर आ, काया निखार मेरी शिखा की, बन जा तू मेरे माथे की बिन्दी, आवारा चाँद चल पड़ा, खूबसूरत धरा की ओर, साथ लिए तारों की बरात, और अलंकृत कर दिया, शिखा को ले धरा से अंतिम छोर, चारों दिशाओं मच गया शोर, चाँद जा बंधा सुनयना शिखा के डोर, ऐसे अद्भुत दृश्य से, हुयी प्रफुल्लित पूर्ण सृष्टि, कान में कहा सुन रे प्रकृति, कलयुग में ! हिमालय पर्वत पर विराजमान, सुनयना शिखा से अविरल निकलती, पवित्र गंगा और  हिमकर  चाँद जैसी, सुन्दर होगी इनकी छटा... सृष्टि का यह वरदान लिए, काशी नगरी में, पुनः इनका संगम होगा, झिलमिलाते तारों का आँगन होगा, उसी आँगन में स्वयं शिव का जनम होगा, शिव के माथे पर सुसज्जित, उस पवित्र गंगा और  हिमकर  चाँद को, कोटि कोटि नमन ! और जो अवतरित स्वयंभू रूद्र है, उस पर न्योछावर ये चमन ...                             -  अभय सुशीला जगन्नाथ

तू है कहाँ , तू है जहां ....

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तू जज़्बात, - तू शामिल उनमे ख़यालात, तू मोहब्बत, - तू ही मेरी इबादत, तू जूनून, - तुझमे ही सुकून, तू आस, - तू बसा हर सांस, तू राह, - तू ही उसकी चाह, तू हसीन, - तू वो यकीन, तू जान, - तू मेरा जहान, तू आँख, - तुझ बिन सब खाक, तू मन, - तू जन्मो का बंधन, तू है कहाँ , - तू है जहां ....              -  अभय सुशीला जगन्नाथ