शब् के जागे तारो को, अब कहाँ नींद आने को है
देखो शब् के जागे तारो को, अब कहाँ नींद आने को है, सुना है इस चांदनी रात मुझे, कोई फिर से मुझे जगाने को है , और सुनहरे ख्वाबो व् ख़यालों सी, परियों की दुनिया में ले जाने को है इश्क़ की इस सावन-ए-बारिश में, आज हम झमाझम नहाने को हैं, ज़रा जम के बरसना ऐ बादल ! मेरे मेहबूब भी तेरे टक्कर में, मुझ पर इश्क़-ए-मोहब्बत, बे-इन्तेहा छमाछम बरसाने को हैं, बादलों की बूंदे चाहे अब जितना बरसे, भला अब इनसे क्या मेरी प्यास बुझेगी, अब तो बात कुछ तभी बनेगी, जब ख्वाबों और ख्यालों में ही सही, तेरी बाँहों के आगोश में, ये सुरमई चांदनी रात कटेगी, तू इतनी सुन्दर है कि, फूल भी तुझसे शरमाने को हैं, चल जा काला टीका लगा ले, यह जलकुकड़ि चाँद , तुझे आज नज़र लगाने को है ! मेरी आवारगी ! मुझे देख बार बार मुस्कुराये, अब यूँ तू ही बता दिल-ए-आवारा, कैसे दोनों को भला नींद आये, जब आवारा मैं, एक नायाब सामान ले आया, देख तेरी आवारगी में, एक अप्सरा का गुमान ले आया, खुदा भी तुझे देख सोचता होगा, इस पारी को जन्नत से उतार, ये मैं किस जहान ले आया ...