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Showing posts from August, 2021

'Sweeeeeeeeeet Sixteeeeeeeeeeeen'

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Time is the only thing, That flies so fast, Recording sweet memories, in our memoir chart, that last… Once you were a little angel, now a girl young & vibrant, Beautiful and Sweet at Heart ! My dear Sweetheart ! Today ! on this Fabulous Day, In a special and poetic way… I welcome you in mid of your teen, Three counts, down thirteen, and three counts, up nineteen, The life’s best and treasured sheen, Unanimously called and known as…  “Sweeeeeeeeeet Sixteeeeeeeeeeeen”                                      - Abhay Sushila Jagannath

तू नहीं तो मैं भी नहीं

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मैं और मेरी आवारगी, सोचते हैं कभी कभी, वो भी क्या दिन थे हसीन, जब दिन रात तू कहती रही, "तू है तो मैं हूँ,  तू नहीं तो मैं भी नहीं" और देख तू आज यही, तन्हाई के आलम में तन्हा, तू कहीं और मैं भी कहीं !                - अभय सुशीला जगन्नाथ  -------------------------------------------------------------- नज़र की बात नज़र में रही, आशिकी भी अपनी गदर में रही, पर रुसवा हुए वो हमसे इस कदर, कि जिगर की चोट इसी जिगर में रही !                                      - अभय सुशीला जगन्नाथ  --------------------------------------------------------------- उनके नशीले नैनों ने, इश्क़ का ऐसा नशा गढ़ा, साकी शराब आजमाते रहे, फिर भी ना मुझ पर नशा चढ़ा !                                  - अभय सुशीला जगन्नाथ 

तू मिले न मिले !

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तू मिले न मिले,  मंज़िल-ए-सफर में,  तेरी हौसला अफजाई से, बंद रास्तों में भी हमको,  मन के ऊंचे उड़ान मिले !   फिर से जड़ों को मिटटी मिली, फिर से पौधे सफर पर चले, जब निकले हरे पत्ते उन शाखाओं पे, तब बागों में तेरी खुशबू से फूल खिले ! फिरते रहे दर बदर, जानने को, तेरे नूर का राज़-ए-असर ! आकर तुझ पर, मेरी आवारगी हुयी बे-असर ! ए जान-ए-जाना, जान-ए-जिगर ! तू ही तो चला रहा है निज़ाम-ए-हस्ती... बदस्तूर हर सहर, हर पहर !                               - अभय सुशीला जगन्नाथ  ---------------------------------------------------- आज ...! अभी ....! और इसी वक़्त.... ! मंज़िल-ए-सफर का हौसला तो कर, बंद रास्तों में भी तुमको,  मन के ऊंचे उड़ान मिलेंगे !  फिर से जड़ों को मिटटी मिलेगी, फिर से पौधे सफर पर चलेंगे, जब निकलेंगे हरे पत्ते उन शाखाओं पे, तब बागों में तिरंगे फूल खिलेंगे ! फिरते रहे दर बदर, जानने को, तेरे नूर का राज़-ए-असर ! आकर तुझ पर, मेरी आवारगी हुयी बे-असर ! ए जान-ए-हिन्दोस्तान ! तू ही तो चला रहा है निज़ाम-ए-हस्ती... बदस्तूर... हर सहर, हर पहर !                               - अभय सुशीला जगन्नाथ

Sweet Sixteenth B’Day ! Teenage !

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  OMG ! Amazing, Stunning, Astonishing ! Your glimpse surprised us all, and we whispered in Banarasi… Saala Ye Bhokaal, Le Hua Bawaal !   Let’s get you in College, Cause you are again in teenage, Youth will be following you, followed by fights and road raze ! Desperately & Passionately, Everyone will propose you, But you won’t be, clearing your flirting haze !   Someone will tune in, Guitar chord, Someone will make, letter hoard… Someone will sing, an old record, Making other Girls & Ladies, Bitterly Jealous and Bored !     The Only One, The Crazy One, with adolescence in that teenage, will write his heart out, with poetic catchphrase, and will try hard, to put beauty synonyms at place, defining your aura with elegance & grace, in Poems, Prose and Phrase !   A passionate romantic fantasy, on a long lasting love line, with a promise for no heartbreaks, nor any bad or worse time, The Only One, The Crazy One, is assuring and swearing again this time, To Remarkable One, and

Sisters are Star…

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  Twinkle Twinkle, Sisters are Star… Whenever Bros need, Extends hand, From away so far… Like an Angel ! To wherever you are... My Twinkling Star, I wish on your B’Day, All your wishes may come true, Be it USUAL or BIZARRE !                          - Abhay Sushila Jagannath  

अक्सरहां रोज़ाना

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उसको वो पुरानी दिखती है, अक्सरहां  मुझे वो नयी सी लगती है, रोज़ाना  बिलकुल अलग ! सबसे जुदा ! सबसे सुन्दर !                               - अभय सुशीला जगन्नाथ  -------------------------------------------------- उसको वो पुरानी दिखती है, अक्सरहां  मुझे वो नयी सी लगती है, रोज़ाना  बिलकुल अलग ! सबसे जुदा ! सबसे सुन्दर !                        - अभय सुशीला जगन्नाथ  ------------------------------------------------ अइय्यो ! चिन्ममा ! कुचि कुचि, रकम्मा ! पास आयी ना, एक प्यारी प्यारी गुड़िया, दे दो ना, सारा जहाँ सोया नहीं, चाँद अभी खोया नहीं   - अभय सुशीला जगन्नाथ  -------------------------------------------------- सब तूने दिया, मेरा क्या है,  मेरा इस जहाँ में,  तू ही खुदा है !                   - अभय सुशीला जगन्नाथ   

ख़यालात-ए-सफर से कैद-ए-रिहाई

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ख़यालात-ए-सफर से इस , दिल-ए-नादान को बचा कर, याद-ए-रहगुज़र से गुज़रने की, तमाम कोशिशे नाकाम रही... अपने ख़यालों की गिरफ्त से, उसकी बेइंतहा-ए-मोहब्बत ने, कभी कैद-ए-रिहाई ही न दी... हम दिल को बचाते रहे, यादों से जी को चुराते रहे, वो सांसो में गुज़रता रहा, धड़कन बन धड़कता रहा...                        - अभय सुशीला जगन्नाथ  ख़यालों की रहगुज़र से, जरा बच कर गुज़रना, कहीं वो हसीन हमनशीने, और उनकी सुनहरी यादें, तुझे ख़यालों की गिरफ्त से, कैद-ए-रिहाई ही न दे                             - अभय सुशीला जगन्नाथ ख़यालों की रहगुज़र से,  जरा बच कर गुज़रना, कहीं हमनशीनों की हसीन यादें, तुझे ख़यालों की गिरफ्त से, कभी कैद-ए-रिहाई ही न दे                        - अभय सुशीला जगन्नाथ

दोस्त की हिचकियाँ

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दोस्त कभी भी, शरारत नही छोड़ते है, जब देखो हमे, छेड़ने की चाहत रखते हैं, इन्तेहा तो देखो मित्रों के इस खुरापाती आदत की, कि जब हम स्वादिष्ट भोजन करते हैं, वो खुदा से, सज़दा-ए-फरियाद कर,, बीच-बीच मे हिचकियाँ भरते हैं, दोस्ती निभाने में, हम भी कम थोड़े ना हैं, हर एक निवाले के संग, हम भी इंतज़ार करते हैं, पता तो चले भला वो यूँ , कब कब हमे याद करते हैं                            - अभय सुशीला जगन्नाथ 

दिवंगत मनीष मिश्रा

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कौन है जो एक साये की तरह, मेरे दिल को छूता हुआ गुज़र जाता है, कभी पास से, कभी दूर से... एक आवाज़, एक नग़मा, एक गीत बन कर रग-रग में उतर जाता, कभी पास से, कभी दूर से... कौन है जो मुझे अपनी तन्हाई का एहसास दिला जाता है, एक खालीपन, सुनापन छोड़ जाता है... मैं उससे देखना चाहती हूँ, जानना चाहती हूँ, उँगलियों से उसके चेहरे को छूना चाहती हूँ... कौन है जो पास रह कर भी मुझसे दूर है... क़दमों की आहट सुनती हूँ, पलटती हूँ, उसे देखती हूँ, तस्वीर बन जाती हूँ, खुदको भूल जाती हूँ,  बेखुद हो जाती हूँ... सागर सरहदी के लिखे डायलॉग में स्मिता पाटिल की आवाज़ र फिर मीर ताक़ी मीर के ग़ज़ल को ख़य्याम द्वारा संगीतबद्ध नगमे को एक अलग श्रेणी प्रदान करती लता दीदी की दिलकी गहराइयों को छूती हुयी रूहानी आवाज़ में , फिल्म "बाज़ार" का गीत... " दिखाई दिए यूँ , कि बेखुद किया, हमे आपसे भी जुदा कर चले, दिखाई दिए यूँ ...." गीत और डायलॉग का एक अद्भुत और अविस्मरणीय संगम, आप भी सुनियेगा, आपके भी जेहन में एक अमिट छाप छोड़ जायेगा ! पहले mp3 का ज़माना नहीं था, कैसेट्स में पेंसिल / पेन, स्पेशली वो रेनॉल्ड्स की पेन में डाल, घु