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Showing posts from May, 2023

सुकून की पत्ती, कुल्हड़ वाली चाय, दोपहर की धूप

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 उबलती इस ज़िंदगी में, फिर सुकून की पत्ती मिलाओ, वही मसालेदार मुस्कान लिए, कुल्हड़ वाली चाय पिलाओ, फिर चुस्कियों में यादें सुलगाओ, फिर आंखें नम कर जाओ...                          - अभय सुशीला जगन्नाथ  ------------------------------------------------------------------- दोपहर की धूप में, घाटों पर घुमाने के लिए, हर शाम #लंकेटिंग पर तेरा, रूठ जाना याद है, हमको अब तक आशिक़ी का, वो ज़माना याद है                                      -- अभय सुशीला जगन्नाथ

बचपन, " वायु " बनकर " युवा ", किताबों बीच गुलाबों में.

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सवालों के जवाबों में, जाने कितने ख्वाब बीते, कलम और किताबों में,  पर तेरे मेरे दिन-रात बीते, किताबों बीच गुलाबों में...                  - अभय सुशीला जगन्नाथ  वो बचपन के तेरे मेरे, यादें हैं वैसे के वैसे,  " वायु " बनकर " युवा " , हम साथ उड़े थे जैसे ...                        - अभय सुशीला जगन्नाथ  बचपन से हमारे तुम्हारे, कुछ याद जुडे हैं ऐसे, " वायु " बनकर स्वछंद " युवा " , खुले आकाश उड़े हो जैसे ...               - अभय सुशीला जगन्नाथ 

माँ बनकर मैं तुझे छु लुंगी

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मैं तो उषा हूँ , हर रोज़ मिलूंगी, सूरज के प्रकाश के संग, पुष्प बन , हर रोज़ खिलूँगी, लिए इंद्रधनुषी हर एक रंग... बेपरवाह हंसना मेरी हंसी, मैं आउंगी उस मुस्कान में, बस गयी हूँ सदा के लिए, मैं तो तेरे जान-प्रान में... सुबह जब भी आंख खुलेगी, उषा बन मैं तुझे मिलूंगी, हथेली चेहरे पर रख लेना , माँ बनकर मैं तुझे छु लुंगी...                       - अभय सुशीला जगन्नाथ

वो ज़माना याद है

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दोपहर की धूप में, घाटों पर घुमाने के लिए, हर शाम लंकेटिंग पर तेरा, रूठ जाना याद है, हमको अब तक आशिक़ी का, वो ज़माना याद है                                                                                              - अभय सुशीला जगन्नाथ तेरे बनारस की हर शाम, हर सुबह, क्या खूब ! कितना सुहाना लगे,  चंद लम्हात भी जैसे, एक ज़माना लगे                                               अभय सुशीला जगन्नाथ

डी एल डब्लयू से बिछड़े धारों

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ना पूछो हाल बचपन के यारों का, डीoएलoडब्लयू से बिछड़े धारों का, तेरी किताब-ओ-कलम से आशिक़ी, और आवारगी हम जैसे आवारों का !                           - अभय सुशीला जगन्नाथ   ना पूछो हाल हम अवारों का, डी एल डब्लयू से बिछड़े धारों का, उनकी वो किताब-ओ-कलम से आशिक़ी, और अपनी बैट-बॉल लिए सहर-ए पहर, आवारगी करते खेल के प्यारों का                             - अभय सुशीला जगन्नाथ  

ना पूछो हाल हम अवारों का

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ना पूछो हाल बचपन के यारों का, डीoएलoडब्लयू से बिछड़े धारों का, तेरी किताब-ओ-कलम से आशिक़ी, और आवारगी हम जैसे आवारों का !                           - अभय सुशीला जगन्नाथ    ना पूछो हाल हम अवारों का, डी एल डब्लयू से बिछड़े धारों का, उनकी वो किताब-ओ-कलम से आशिक़ी, और अपनी बैट-बॉल लिए सहर-ए पहर, आवारगी करते खेल के प्यारों का ...                          - अभय सुशीला जगन्नाथ  याद-ए-माज़ी की आवारगी में, आवारा रोज़ एक बार, पहुंचता तेरे शहर है, बड़ी कशमकश-ए-दहर है, क्या अब भी यहीं वो दर्द-ए-जिगर है ? जिसके लिए एक ख़यालात, वो चुनता हर एक सहर है, फिर उनको अल्फ़ाज़ों में, बुनता रहता एक एक पहर है, कोरे कागज़ों पर उतरते, उन जज़्बातों का अंदाज़-ए-बयां, क्या उसी दर्द-ए-जिगर का असर है ? या फिर, अभी बाकी ज़िन्दगी की सहर है, जिसके लिए आवारा तेरी आवारगी में, रोज़ एक बार पहुंचता तेरे शहर हैं ...   - अभय सुशीला जगन्नाथ 

मज़दूर हो तुम भी, मज़दूर हैं हम भी...

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 1st May, Labor Day पर,  KeyBoard से Creative Labor कर उंगलियों की यायावरी से, आपको झकझोरते, मैं और मेरी आवारगी ! मेहनतकश हांथों को,  मजबूत बनाये रखना... ना जाने कब काम से,  आराम की बात होगी... मज़दूर हो तुम भी,  मज़दूर हैं हम भी... किस-काम पर देखें, फिर मुलाक़ात होगी !                - अभय सुशीला जगन्नाथ