वैसे तो तुमने, दादी नानी और माँ से, बहुत सी कहानियां, सुनी होगी, पर चलो आज मैं तुम्हे, एक कहानी सुनाता हूँ, बहुत समय पहले, धरती पर, भीषण अकाल पड़ा, लोग दाने दाने को, तरस गए, ऐसा लगा जैसे, प्रलय आ गया, तब धरा के लोगों ने, प्रलयंकारी शिव की, आराधना और पूजा, शुरू कर दी, महीनो की कठिन पूजा से, शिव प्रसन्न हुए, और अपनी जटा से, गंगा की अविरल धारा, धरती की और मोड़ दिया, और उसी गंगा के किनारे, धन धान्य से परिपूर्ण, काशी नगरी बसाई, गंगा के किनारे बसे लोग, ख़ुशी से झूम उठे, परन्तु जो गंगा से, दूर दराज़ के लोग थे, वो भगवान् शिव से, शिकायत करने लगे, तब धरती के, सर्व जन कल्याण हेतु, शिव ने शक्ति को, धरती पर भेजने की, तैयारी शुरू की, और भक्त अपने को, सौभाग्यशाली मान, उनकी कठिन पूजा, करने में लग गए, पर जब शक्ति, धरती पर आने को, तैयार हो रही थी, तब सब देवी देवता, परियों अप्सराओं के संग, बहुत रो रहे थे, देवताओं परियों अप्सराओं को, रोता हुआ देख, धरती के लोगों ने, शक्ति की रक्षा के लिए, रक्षाबंधन उत्सव